पीआर मानसिंह: 1983 वर्ल्डकप में टीम का मैनेजर, जिसने उधार पर सारा सामान इंग्लैंड पहुंचाया
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पीआर मानसिंह को टीम इंडिया का बड़ा भाई माना जाता था. टीम इंडिया में बतौर खिलाड़ी तो वो एंट्री नहीं ले सके, लेकिन उन्होंने बतौर डिप्टी मैनेजर ड्रेसिंग रूम में एंट्री ज़रूर ली. वो भी पाकिस्तान के दौरे पर, क्योंकि साल 1978 में जब भारत ने तय किया कि टीम इंडिया सीरीज़ खेलने के लिए पाकिस्तान जाएगी तब वह पूरी तरह से राजनीतिक क्रिकेट सीरीज़ समझी जा रही थी.
साल 1965-66 की बात है जब रणजी ट्रॉफी का सीज़न चल रहा था. हैदराबाद की टीम अपने मुकाबले खेल रही थी, लेकिन एक खिलाड़ी था जिसे टीम में शामिल नहीं किया गया. उस प्लेयर का काम यही था कि वो सिर्फ बेंच पर बैठा रहता था, ताकि कभी तो वो सुबह होगी कि कप्तान बोलेगा तुम आज खेल रहे हो. लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्योंकि टीम में खेलने वाले दूसरे खिलाड़ियों में मंसूर अली खान पटौदी, अब्बास अली बेग, हबीब अहमद जैसे बड़े नाम शामिल थे. तो एक दिन एक सीनियर प्लेयर ने बेंच पर बैठे इस खिलाड़ी से कहा, ‘मियां, कबतक बेंच पर बैठे रहोगे’. और सलाह दी कि यहां बैठने पर वक्त खराब नहीं करो और मैदान से बाहर चीज़ों को संभालने का काम करो.सलाह ने कर दिया जादू सलाह देने वाला वो सीनियर प्लेयर गुलाम अहमद था, जो उस वक्त के बेहतरीन ऑफ स्पिनर में गिना जाता था. सुभाष गुप्ते, वीनू मांकड़ के साथ गुलाम अहमद की तिकड़ी तब देश के बेस्ट स्पिनर्स में से एक थे. जिस प्लेयर को सलाह दी गई थी उसका नाम था पीआर मान सिंह. अपने सीनियर खिलाड़ी की सलाह मानकर क्रिकेट छोड़ एडमिनिस्ट्रेशन में घुसने वाले पीआर मान सिंह बाद में 1983 वर्ल्डकप जीतने वाली भारतीय टीम के बड़े भाई थी, जो ना होते तो शायद ये सपना कभी पूरा ही नहीं होता. पीआर मानसिंह को टीम इंडिया का बड़ा भाई माना जाता था. टीम इंडिया में बतौर खिलाड़ी तो वो एंट्री नहीं ले सके, लेकिन उन्होंने बतौर डिप्टी मैनेजर ड्रेसिंग रूम में एंट्री ज़रूर ली. वो भी पाकिस्तान के दौरे पर, क्योंकि साल 1978 में जब भारत ने तय किया कि टीम इंडिया सीरीज़ खेलने के लिए पाकिस्तान जाएगी तब वह पूरी तरह से राजनीतिक क्रिकेट सीरीज़ समझी जा रही थी. तय हुआ कि बड़ौदा के महाराजा को टीम का मैनेजर बनाकर साथ भेजा जाएगा, लेकिन उन्होंने आगे शर्त रख दी कि मैं ऐसा तब करूंगा जब पीआर मानसिंह को मेरा डिप्टी बनाया जाएगा. और इस तरह ड्रेसिंग रूम में पीआर मानसिंह घुस गए. इस तरह टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेलने का सपना देखने वाले पीआर मानसिंह की एंट्री हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन में बतौर अधिकारी काम करते-करते मैनेजर बनकर टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में हो गई. अब अगर साल 1983 के वर्ल्डकप की बात करें तो ये वो दौर था जब टीम इंडिया को कोई तवज्जो नहीं दी जाती थी, ना घर में और ना ही बाहर. पिता का वो सपना क्योंकि उससे पहले कुछ ऐसा नहीं हुआ था कि इंडिया क्रिकेट के मैदान पर कुछ कारनामा कर दे और लोग जश्न मनाएं या खिलाड़ियों का स्वागत-सतकार हो सके. ऐसे माहौल में पीआर मानसिंह को टीम के साथ वर्ल्डकप जिताने की जिम्मेदारी मिली. जब तय हुआ कि बतौर मैनेजर वो टीम इंडिया के साथ इंग्लैंड जा रहे हैं तब मानसिंह के पिता ने अपनी दुकान में एक अलमारी खाली करवाई और काम करने वालों से कहा कि मेरा बेटा इंग्लैंड जा रहा है, कप लेकर आएगा. जिस टीम इंडिया ने अभी तक के दो वर्ल्डकप में सिर्फ एक ही मैच जीता हो, उस टीम के मैनेजर के पिता बड़े ही गर्व के साथ इस बात का ऐलान कर रहे थे. जबान पर सरस्वती बैठने वाली कहावत यहां पर पूरी तरह सत्य वचन बन गई. वर्ल्डकप की घड़ी नज़दीक थी, सुनील गावस्कर को हटाकर कपिल देव टीम इंडिया के कप्तान बन चुके थे. एक युवा कप्तान की अगुवाई में 14 खिलाड़ियों की टीम को वर्ल्डकप जीतने की जिम्मेदारी दी गई. उनके साथ पंद्रहवा व्यक्ति खुद मानसिंह थे. अधिकतर खिलाड़ी इसे छुट्टियां ही समझ रहे थे, क्योंकि हर किसी को पता था कि हम तो कुछ ही मैच में बाहर हो जाएंगे.
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