कैसे तमिलों से नफरत करते-करते श्रीलंका को बर्बाद कर गए सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी?
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श्रीलंका आज आर्थिक, राजनीतिक और मानवीय संकट से जूझ रहा है. गोटबाया राजपक्षे के देश से भागने और राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली. आगामी 20 जुलाई को संसद में नए राष्ट्रपति का चुनाव होगा. लेकिन, सवाल यह है कि क्या श्रीलंका का नया नेता भी सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी होगा या तमिलों को भी साथ लेकर चलेगा.
नई दिल्लीः श्रीलंका आज आर्थिक, राजनीतिक और मानवीय संकट से जूझ रहा है. गोटबाया राजपक्षे के देश से भागने और राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली. आगामी 20 जुलाई को संसद में नए राष्ट्रपति का चुनाव होगा. लेकिन, सवाल यह है कि क्या श्रीलंका का नया नेता भी सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी होगा या तमिलों को भी साथ लेकर चलेगा.
योग्यता को दरकिनार कर जाति के दम पर किया नेतृत्व दरअसल, श्रीलंका की बर्बादी के पीछे खराब आर्थिक नीतियों के साथ-साथ तमिलों से नफरत और सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी सोच भी है. राजनीतिक विशेषज्ञ नील डेवोटा श्रीलंका के राजनीतिक बर्बादी के रास्ते की व्याख्या करते हैं: यह राष्ट्रवाद था जिसने योग्यता में निहित शासन को जातीयता द्वारा प्रतिस्थापित करने में सक्षम बनाया, जिसने समय के साथ देश के सबसे खराब नागरिकों द्वारा चलाए जाने वाले काकिस्टोक्रेसी - शासन का नेतृत्व किया.
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि हमास के खिलाफ युद्ध में अगर जरूरत पड़ी तो उनका देश ‘अकेला भी खड़ा’ रहेगा. नेतन्याहू का यह बयान, बृहस्पतिवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की उस चेतावनी के बाद आया जिसमें कहा गया है कि अमेरिका, इजराइल को दक्षिणी गाजा शहर रफह पर हमले के लिए हथियार मुहैया नहीं करेगा.