
किसी बड़े बैंक से कम नहीं थे जगत सेठ, अंग्रेज भी लेते थे कर्ज, खुद बनाते थे सिक्के... फिर सबकुछ हो गया ऐसे खत्म!
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ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिकारिक इतिहासकार रोबेन ओर्मे (Roben Orme) ने जगत सेठ को उस समय दुनिया में ज्ञात सबसे महान बैंकर और मनी चेंजर के रूप में संबोधित किया है. आज जगत हाउस
आज दौलत की बात होती है, तो सबसे पहले मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का नाम आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं जब देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी, तब भी भारतीय रईसों का डंका बजता था. ऐसे ही एक अमीर थे सेठ फतेह चंद उर्फ 'Jagat Seth'. इनका नाम जगत सेठ इसलिए पड़ा, क्योंकि ये 18वीं सदी के सबसे बड़े इंटरनेशनल बैंकर भी थे और अंग्रेज भी इनके कर्जदार थे. उस समय उनकी नेटवर्थ आज के बड़े-बड़े रईसों के बराबर थी.
अंग्रेजी हुकूमत में था दबदबा भारत को सोने की चिड़िया ऐसे ही नहीं कहा जाता था, अंग्रेजों ने भी इसी समृद्धता को देखकर सालों तक यहां राज किया. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान दुनियाभर में होने वाले कारोबार में एक बड़ा रोल भारत का रहता था. जगत सेठ अंग्रेजों के समय के एक बड़े बिजनेसमैन और बैंकर थे, जो ब्याज पर पैसे देने का काम करते थे. कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि उस समय उनके पास जितनी दौलत थी, वो आज की करेंसी के हिसाब से करीब 2 लाख करोड़ रुपये बैठती है.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिकारिक इतिहासकार रोबेन ओर्मे (Roben Orme) ने जगत सेठ को उस समय दुनिया में ज्ञात सबसे महान बैंकर और मनी चेंजर के रूप में संबोधित किया है. 1750 के दशक में, उनकी कुल संपत्ति 14 करोड़ रुपये आंकी गई थी.
देश की सबसे बड़ी बैंकिंग फैमिली एक अन्य इतिहासकार गुलाम हुसैन खान का मानना था कि जगत सेठ ने 17वीं शताब्दी की अंतिम तिमाही में अपना बिजनेस खड़ा किया और 18वीं शताब्दी तक, यह शायद देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घराना था. जगत सेठ बंगाल में वित्तीय मामलों में बेहद प्रभावशाली थे और उनका वहां सिक्के ढालने का एकाधिकार था. उस समय देश के कई इलाकों में जगत सेठ के ऑफिस भी हुआ करते थे, जहां से पैसों को कर्ज पर देने का काम संचालित होता था. ऐसा माना जाता है कि जगत सेठ सिर्फ आम जरूरतमंदों को ही पैसे नहीं देते थे, बल्कि ब्रिटेन जैसे देश को भी अपना कर्जदार बना लिया था.
कलकत्ता, ढाका, दिल्ली तक कारोबार आज के बैंक जिस तरह से कारोबार करते हैं, कुछ हद तक ठीक उसी तरह से जगत सेठ का भी कारोबार चलता था. देश के विभिन्न शहरों के बीच ट्रेड को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने शानदार इंटरनल कम्युनिकेशन सिस्टम बनाकर रखा था, जिसमें की संदेशवाहक जुड़े हुए थे. उनका बैंकिंग नेटवर्क कलकत्ता, ढाका, दिल्ली और यहां तक कि पटना तक फैला हुआ था. 'प्लासी: द बैटल दैट चेंज्ड द कोर्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में सुदीप चक्रवर्ती ने लिखा है कि वे अपने समय के अंबानी थे.
अंग्रेजों ने नहीं लौटाया जगत सेठ से लिया कर्ज आज जगत सेठ या उसके परिवार का नाम किताबों में दर्ज है, लेकिन रईसों की बात आती है, तो शायद ही इनका जिक्र होता हो. इसका एक बड़ा कारण यह रहा कि जगत सेठ परिवार की संपत्ति पूरी तरह खत्म हो गई. अंग्रेजों के बढ़ते वर्चस्व के बीच परिवार ने अपनी पकड़ खो दी. यही नहीं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जगत सेठ से जितने भी पैसे कर्ज के तौर पर लिए थे वह कभी लौटाए ही नहीं. सियार-उल-मुताखेरिन के अनुसार, जगत सेठों ने सिराज के खिलाफ अभियान के लिए अंग्रेजों को तीन करोड़ रुपये की पेशकश की थी. यह आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा सकता है, लेकिन बहुत संभव है कि उन्होंने उन्हें इतनी रकम दी थी.

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