लीग ही लीग... इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए बढ़ा खतरा? प्लेयर के रिटायरमेंट ने फिर छेड़ी बहस
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साउथ अफ्रीका के ऑलराउंडर ड्वेन प्रिटोरियस के संन्यास के बाद एक बार फिर बहस छिड़ी है कि लीग क्रिकेट इंटरनेशनल गेम्स के लिए खतरा बन सकता है. आईपीएल समेत दुनियाभर में दर्जनभर लीग चल रही हैं, जिनकी वजह से आईसीसी का शेड्यूल भी गड़बड़ाया है.
इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) जब शुरू हुआ था तब हर किसी ने यही तर्क दिया था कि इंटरनेशनल क्रिकेट इस तरह की लीग से खत्म हो जाएगा. आईपीएल को 15 साल हो गए हैं और अब उन भविष्यवाणियों का सच होना शुरू होता दिख रहा है. अब आईपीएल के साथ-साथ दुनियाभर में दर्जनों लीग चल रही हैं और साल भर लीग ही चल रही हैं, जिसका असर इंटरनेशनल क्रिकेट पर पड़ रहा है.
यह बहस लंबे वक्त से चल रही है और अब एक बार फिर छिड़ गई है. क्योंकि साउथ अफ्रीका के 33 साल के ऑलराउंडर ड्वेन प्रिटोरियस ने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि वो टी-20 लीग्स पर फोकस करना चाहते हैं और अधिक वक्त इसी में बिताना चाहते हैं. सोशल मीडिया पर इसके बाद इंटरनेशनल क्रिकेट को खतरा होने की बहस फिर शुरू हुई.
दुनिया में चल रही हैं कितनी लीग? ड्वेन प्रिटोरियस का रिटायरमेंट तब आया है, जब साउथ अफ्रीका में ही अपनी पहली टी-20 लीग शुरू हो रही है. साउथ अफ्रीका क्रिकेट इन दिनों पैसों की कमी से जूझ रहा है, ऐसे में अगर लंबे वक्त तक सर्वाइव करना है तो उन्हें इस तरह की लीग की जरूरत पड़ी है. साउथ अफ्रीका की टी-20 लीग की सभी टीमें आईपीएल की फ्रेंचाइजी का ही पार्ट हैं.
इंडियन प्रीमियर लीग से साल 2008 में जो शुरुआत हुई, वह फ्रेंचाइजी लीग अब दुनियाभर में फैल गई है. बांग्लादेश प्रीमियर लीग, पाकिस्तान सुपर लीग, कैरिबियाई प्रीमियर लीग, अब साउथ अफ्रीका प्रीमियर लीग, दुबई प्रीमियर लीग, बिग बैश लीग, द हंड्रेड समेत कई लीग शुरू हो चुकी हैं और कई अभी भी पाइपलाइन में हैं.
इंटरनेशनल क्रिकेट पर कैसे पड़ रहा प्रभाव? लगातार हो रही लीग, खिलाड़ियों पर बरस रहे पैसे और सस्टेन सिस्टम ने आईसीसी को भी लीग के हिसाब से अपना शेड्यूल फिक्स करने पर मज़बूर कर दिया है. साल में करीब ढाई महीने आईपीएल के फिक्स होते हैं, इस दौरान दुनिया में कोई भी बड़ी लीग नहीं हो रही होती है क्योंकि हर देश का बड़ा खिलाड़ी भारत में ही होता है. इनके अलावा भी अलग-अलग वक्त पर कोई ना कोई लीग चल रही होती है, जहां कई प्लेयर्स पहुंचते हैं.
वेस्टइंडीज़ के अधिकतर खिलाड़ी हर लीग का हिस्सा होते हैं, साथ ही एसोसिएट देशों के खिलाड़ी, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसी छोटी टीमों के खिलाड़ी भी इनमें बिजी होते हैं. क्योंकि ऐसी टीमों के पास इंटरनेशनल सीरीज़ या टूर्नामेंट कम हैं, या खिलाड़ियों को कम मौका मिलता है तो कई खिलाड़ी ऐसी लीग में व्यस्त दिखते हैं. साथ ही इन लीगों में होने से कई खिलाड़ियों को बाद में अपनी इंटरनेशनल सीरीज से ब्रेक भी लेना पड़ता है.