
बॉयफ्रेंड की हत्या की दोषी ग्रीष्मा पहुंची हाई कोर्ट, खुद को मिली फांसी की सजा को बताया गलत
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केरल में जहर देकर अपने बॉयफ्रेंड की हत्या के मामले में सेशंस कोर्ट द्वारा फांसी की सजा को युवती ग्रीष्मा ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है. उसने निचली अदालत के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि बिना तथ्यों के आधार पर उसके खिलाफ फैसला सुना दिया गया क्योंकि इसके लिए कोर्ट के ऊपर दबाव था. हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत से सभी दस्तावेज मांगे हैं.
केरल में अपने प्रेमी को जहर देकर मारने के मामले कोर्ट द्वारा फांसी की सजा दिए जाने के बाद अब इस मामले में दोषी पाई गई ग्रीष्मा ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है. केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज तलब किए हैं जिसमें 24 साल की युवती को अपने प्रेमी की हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी. यह हत्या 2022 में हुई थी और पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई थी.
न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जॉबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस मामले में अपना पक्ष रखने को कहा है. दोषी युवती ग्रीष्मा और उसके मामा निर्मला कुमारण नायर ने अपनी सजा को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. साथ ही, उन्होंने जब तक अपील पर अंतिम फैसला न आ जाए तब तक के लिए अपनी सजा निलंबित करने की भी मांग की है. हाईकोर्ट ने ग्रीष्मा के मामा की तीन साल की जेल की सजा निलंबित कर दी है. उन पर सबूत नष्ट करने का आरोप था और फिलहाल वो जमानत पर रिहा हैं.
सेशंस कोर्ट ने दी थी मौत की सजा
इससे पहले, 20 जनवरी को सेशंस कोर्ट ने ग्रीष्मा को मौत की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हत्या 'अत्यंत क्रूर, जघन्य, और घृणित' थी, जिसने समाज की सामूहिक चेतना को झकझोर दिया. सजा मिलने के बाद अब अपनी अपील में ग्रीष्मा ने दावा किया है कि सेशंस कोर्ट का फैसला तथ्यों, सबूतों और कानून के खिलाफ है. उनका कहना है कि अदालत ने सबूतों की विवेचना करने में गंभीर गलती की है.
इसके अलावा, याचिका में ग्रीष्मा ने यह भी तर्क दिया है कि जिस अदालत ने उसे दोषी ठहराया, वह इस मामले की सुनवाई करने के लिए सक्षम नहीं थी क्योंकि अपराध तमिलनाडु के पालुक्कल पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में हुआ था.
ग्रीष्मा ने यह भी दावा किया कि कोर्ट ने गलत तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि उसने राज को अपने जाल में फंसाया उसकी दलील के अनुसार, 'यह साफ था कि मृतक (राज) अपने इच्छानुसार अभियुक्त (ग्रीष्मा) के घर आया था, न कि किसी प्रकार के प्रलोभन के कारण. इसलिए, कोर्ट द्वारा यह मानना कि अभियुक्त ने मृतक को छलपूर्वक फंसाया, बिना किसी ठोस सबूत के किया गया फैसला है.'

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