दिन 25 जून, साल 1975... इतिहास के काले अध्याय से एक दिन पहले क्या-क्या हुआ था?
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यूं तो इस कहानी की शुरुआत तमाम संकटों से गुज़रते हुए पहले ही हो गई थी, लेकिन हम उस सबसे थ्रिलर सीन की बात करते हैं, जो जून महीने की 25 तारीख की काली रात को शुरू हुआ था.
इंदिरा गांधी... ये भारत के इतिहास का वो नाम है, जिसे सत्ता से हटाने का जिम्मेदार एक बहुत बड़ा तूफान था. आपने 'परफेक्ट स्टॉर्म' का नाम सुना होगा. कहा जाता है कि जब सारी कंडीशंस परफेक्ट हों तो एक गजब का तूफान आता है. अब ये तूफान भारत में कब और कैसे आया, आज हम इस बारे में बात करेंगे. क्योंकि इसी तूफान का सबसे ज्वलंत रूप था आपातकाल. वही आपातकाल जिसे भारत के इतिहास का काला अध्याय भी कहते हैं. ज़हन में आपातकाल का नाम आते ही चीख चिल्लाहट के साथ पीछे से ज़ोर ज़ोर से एक नारा गूंजता और फिर खामोश होता दिखता है- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है', 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.'
देश में एक साथ कई चीज़ें हो रही थीं. एक को संभालो तो दूसरी हाथ से फिसल जाए, दूसरी को संभालो तो तीसरी फिसल जाए और तीसरी को संभालो तो चौथी... एक तरफ गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था, दूसरी तरफ बिहार में छात्र प्रदर्शन कर रहे थे, तभी जय प्रकाश नारायण बिहार प्रदर्शन से जुड़ गए और देशभर में इस क्रांति को आग की तरह फैला दिया. इतना सब हो रहा था, कि सभी रेल कर्मियों की हड़ताल होने लगी, इसी वक्त इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राजनायारण मामले में अपना फैसला सुना दिया. सरकार के लिए इधर उधर सब तरफ से संकट के बादल घिर आए. इस तूफान के केंद्र में थीं इंदिरा. हर तरफ से कुर्सी खिंचती नज़र आ रही थी. एक हाथ से बचाएं, तो दूसरा खींचने को आतुर था.
25 तारीख की वो काली रात
यूं तो तमाम संकटों की शुरुआत पहले ही हो गई थी, लेकिन उस सबसे थ्रिलर सीन की बात करते हैं, जो जून महीने की 25 तारीख की काली रात को शुरू हुआ. तब देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर दिया गया. नागरिकों से उनके अधिकार छीन लिए गए. राजनीतिक विरोधियों को उनके घर या दूसरे ठिकानों से खदेड़कर जेलों में ठूंसा गया. अभिव्यक्ति व्यक्त करना अब अपराध हो गया. हर तरफ सेंसरशिप का ताला जड़ दिया गया. अब पत्र पत्रिकाओं में केवल वही छपता जो उस समय की सरकार चाहती थी. आकाशवाणी की वाणी में भी खौफ था. प्रकाशन प्रसारण से पहले कंटेंट सरकारी अधिकारी के पास भेजा जाता और उसे सेंसर करवाना पड़ता.
इस कहानी का हीरो वो था, जिसके आगे कोई भी हीरो धूल फांकता दिखे. यानी लोकनायक जय प्रकाश नारायण. 72 साल के बुजुर्ग समाजवादी, सर्वोदयी नेता नारायण के पीछे देशभर के क्रोधित छात्र और युवा हिंसक और अनुशासित तरीके से लामबंद होने लगे थे. इनके गुस्से से लाल होने के पीछे का कारण था महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का उनके चरम पर पहुंचना. गुजरात और बिहार की सीमा को लांघकर कब ये क्रांति देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गई पता ही नहीं चला, मानो जंगल की कोई आग हो जो फैलती जा रही थी. क्रांति ने राज्यों की कांग्रेस सरकारों के साथ साथ केंद्र में मौजूद सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी की सरकार को भी अंदर तक झकझोर कर रख दिया.
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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