World Refugee Day: पाकिस्तान से आए उन हिंदुओं की कहानियां जो 'अपने मुल्क' लौटकर भी अपनाए नहीं जा सके
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हर साल 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है. इसका मकसद है, हिंसा और यातनाओं की वजह से अपना देश छोड़ने पर मजबूर हुए लोगों को हिम्मत देना. इनमें पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी भी शामिल हैं. वहां हो रही नाइंसाफियों से बचकर वे हिंदुस्तान पहुंच तो गए, लेकिन यहां भी उन्हें न घर मिला, न भरोसा. पाकिस्तान में बीत चुके साल धब्बे की तरह उनके साथ चलते हैं.
यूनाइटेड नेशन्स रिफ्यूजी एजेंसी के मुताबिक पूरे विश्व में सौ मिलियन से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो किसी न किसी वजह से अपना देश छोड़ने पर मजबूर हुए. फिर चाहे वो सीरिया हो, वेनेजुएला हो, या फिर पाकिस्तान. बाकी देशों के मामले अक्सर इंटरनेशनल मीडिया में आ जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में माइनोरिटी के हालातों पर खास बात नहीं होती. Aat Tak डिजिटल ने पाक से भागकर आए ऐसे ही कुछ शरणार्थियों को टटोलकर ये समझना चाहा कि कैसा होता है एक हिंदू का पाकिस्तान में रहना. 5 कहानियों की शक्ल में उनका स्याह तजुर्बा यहां पढ़िए.
पहली कहानी, उस मां की, जिसे दुधमुंह बच्चे को दूर के रिश्तेदारों के भरोसे छोड़कर भागना पड़ा. फिलहाल ये मां जोधपुर में है. शहर से बाहर उस जगह, जहां छत के नाम पर पॉलिथीन की फरफराहट है, और फर्श के नाम तपते पत्थर. आखिरी याद क्या है उसकी? इस सवाल पर जवाब आता है- ‘उसकी गंध. दूध में भीगी हुई.’ बोलते-बोलते एकदम से भभककर रो देती हैं. 'मेरा बच्चा दिला दो. छाती भर-भरके दूध आता है, वहां वो भूख से तड़पता है.'
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'4 दिन का बच्चा छोड़ भागना पड़ा, रुकती तो वो चीथड़े उड़ा देते, पाक में औरत और गोश्त में ज्यादा फर्क नहीं', पाकिस्तान से भागी मां की दास्तां
दूसरी कहानी, ऐसे माता-पिता की, जिनकी नाबालिग बेटी को अगवा कर धर्म बदला गया और 70 पार के मुस्लिम से ब्याह दिया गया. पाकिस्तान में माइनॉरिटी पर काम करने वाली संस्था ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (APPG) ने एक रिपोर्ट में बताया था कि हर साल कम से कम 1,000 हिंदू लड़कियों का धर्म बदलकर उनकी शादी करा दी जाती है. 12 से 25 साल की ये बच्चियां-औरतें अक्सर अपने से दोगुने-तिगुने उम्र के आदमियों से जबरन ब्याह दी जाती हैं. न मानने पर धमकी, रेप और मारपीट आम बात है.
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