
Exclusive: लड़की बनकर सालों मालिक की ‘रखैल’ बना रहा, दाढ़ी उगते ही…अफगानिस्तान के ‘बच्चा-बरीश’ की कहानी
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सुर्ख लिपस्टिक, गहरा काजल, पैरों में घुंघरू और नकली छातियां...मैं रोज इस मेकअप के साथ नाचता. जब उम्र बढ़ी तो मालिक ने मुझे नए 'कमउम्र' लड़के से रिप्लेस कर दिया. अब मेरे पास न काम है, न मर्दों की महफिल में नाचने के अलावा कोई दूसरा हुनर. इतने साल 'बच्चा बरीश' रहते हुए अच्छा खाने-पीने की आदत लग गई थी. अब वो भी नसीब नहीं.
बच्चा-बाजी! गहरे पानी में डुबोई हुई लाश की तरह ये टर्म भी फूलकर बार-बार सतह पर आ जाती है. तालिबान-शासित अफगानिस्तान में छोटे लड़कों की यौन गुलामी पर कथित तौर पर काफी हद तक रोक लगी. कोई कमांडर बच्चा-बाजी में पकड़ा जाए तो उसे 20 साल की सजा से लेकर मौत तक हो सकती है, लेकिन तब भी ये चलन बंद नहीं हो सका. लगातार चल-बदल रही खबरों के बीच पैरों में घुंघरू बांध थिरकते और रेप झेलते इन बच्चों की चीख पुराने पलंग की चरमराहट से ज्यादा नहीं. सुनाई देते हुए भी नजरअंदाज की जाती हुई. कई संवेदनशील जानकारियों पर बात करते हुए जब हमने बच्चा बाजी के पीड़ितों से बात कराने की गुजारिश की तो खुफिया विभाग के कमांडर एकदम से इनकार कर देते हैं. 'ये काम बेहद खतरनाक और उससे भी ज्यादा मुश्किल है. तीन-चार सूबों में ये चल तो रहा है लेकिन बात करने को कोई भी तैयार नहीं होगा.'
कई दिनों की कोशिश के बाद आखिरकार हम एक परिवार तक पहुंच सके, जिनका एक बेटा बच्चा-बाजी में फंसकर सालों घर से गायब रहा. अब वो लौट चुका है, अनगिन फसलों के बाद बंजर हुई जमीन जैसा. चेहरे के अलावा उसमें कुछ भी पहले-सा नहीं. अफीम के खेत में काम कर रहा था, जब कुछ लोग मुझे उठाकर ले गए. डर-मारपीट-थकान- या इन सबका असर था कि मैं बेहोश हो गया. होश आया तो एक नई छत के नीचे था. नए नाम और नई पहचान के साथ. मैं जुनैद से गुल बन चुका था. अब मैं लड़कियों की तरह सजकर लोगों के बीच नाचता. महीना बीतते-बीतते मुझे नए पेशे के सारे गुर आ गए. चेहरे पर सुर्खी जितनी गहरी होगी और कमर में जितनी लोच होगी, मालिक उतना ही मेहरबान होंगे. वे मुझे पैसे भी देते और भरपेट खाना भी. बदले में मुझे मुंह भींचकर रेप सहना और जब वे कहें, नाचना होता था.
क्या आपको नाचने की ट्रेनिंग दी गई थी, या आपको ये काम पसंद था?
नहीं. इसमें ट्रेनिंग की खास जरूरत नहीं. बस, कोई संगीत चलता होगा, जिसपर आप हल्के-हल्के थिरकते रहे. चारों ओर मालिक और उसके दोस्त बैठे होंगे. अक्सर वे अपनी बातचीत करते रहते हैं. कोई बिजनेस डील. या किसी मसले पर चर्चा. या फिर यूं ही हंसी-मजाक. बीच- बीच वे मुझे भी देख लेते.
नाच ज्यादा ही पसंद आ जाए तो कोई-कोई जेब से पैसे भी निकालता. लेकिन इन पैसों को लेने का एक खास तरीका था. हमें थिरकते हुए ही जाकर उसे अपने दांतों से उठाना होता. हाथों से पैसे लेना उनके ओहदे की तौहीन है. शुरुआत में एकाध मैंने ऐसा किया तो उस रात मालिक ने रेप से पहले जमकर पिटाई की. मालिक (वे इसे आका कहते हैं) के पास पहले से ही दो और बच्चा बरीश थे. मुझसे बड़ी उम्र के. मुझसे ज्यादा ताकतवर. जब मालिक मेरा रेप नहीं करता था, वे कर रहे होते थे. साथ में मारपीट भी करते. लेकिन ध्यान रखते थे कि कभी भी चेहरे या ऐसे हिस्से पर चोट न लगे, जो तुरंत दिख जाए. जल्द ही समझ आ गया कि मैं उन सबमें बेहतर हूं. मेरा चेहरा अपनी उम्र के दूसरे लड़कों से कुछ ज्यादा कमसिन था. गांव से हूं तो धुन की समझ भी बाकियों से ज्यादा थी. रूबाब बजाना भी आता. थोड़े वक्त में मैं मालिक का चहेता बन गया. वो मुझे आशना बुलाने लगे. मेरी एक शिकायत, और बाकी लड़के काम से निकाले जा सकते थे. पुराने लोग भी मुझसे डरने लगे. फिर कई सालों तक मैं उनका पसंदीदा बना रहा. वे दोस्तों के सामने मेरे नाजुक चेहरे और लंबे बालों की ढींग हांकते. मुझे भी ये अच्छा लगने लगा था. घर पर हम कई बार दो वक्त का खाना नहीं खा पाते थे. यहां रोज भरपेट और मनपसंद खाना मिलता. मुझे मंटू (मांस और सब्जियों की भरवां पकौड़ियां) खाना अच्छा लगता है. ये जानने के बाद अक्सर ही मेरे लिए मंटू मंगवाया जाता. मेरे लिए कीमती खुशबू खरीदी जाती. और नर्म कपड़े. आदत हो चुकी थी, तो रेप भी अब दर्द नहीं देता था. बीमार होने पर मालिक नरमी भी रखते. डांस के अलावा हमारे और भी कई काम थे. नजर रखना कि कोई आका की बुराई या उसके खिलाफ साजिश तो नहीं कर रहा. उनके छुट्टे पैसों का हिसाब-किताब रखना. रसोइये को धमकाते रहना. मेरी पकड़ इतनी हो चुकी थी कि ऊंची कद के लोग भी मुझसे प्यार से बात करते कि कहीं मैं शिकायत न कर दूं.
टेलीग्राम पर हो रही बातचीत में यही बातें हमारा सूत्र भी बताता है.

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