
हर साल एनिमल टेस्टिंग में जा रही लाखों पशु-पक्षियों की जान, लैब में हो रहे डिप्रेशन के शिकार
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पेटा की मानें तो हर साल 110 मिलियन से ज्यादा जानवर सिर्फ अमेरिकी लैबों में मार दिए जाते हैं. कुछ पर दवाओं की जांच होती है, कुछ पर कॉस्मेटिक्स की. कुछ को जहरीली गैसें सुंघाई जाती हैं, तो ज्यादातर को लोहे के पिंजरों में ऐसे रखा जाता है कि वे हिल-डुल भी न सकें. सर्जरी के बाद 20 प्रतिशत मामलों में ही उन्हें दर्द की दवा मिलती है.
ब्रेन चिप को लेकर चर्चा में आई एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक अब गंभीर आरोपों के घेरे में है. कंपनी के लोगों ने ही कहा कि मस्क के दबाव के कारण एनिमल टेस्टिंग की गति बढ़ानी पड़ी, जिसके कारण बहुत से जानवर मारे गए और अब भी उनपर हिंसा हो रही है. अब यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर ने इसपर जांच बैठा दी है.
इस बीच ये सवाल उठ रहा है कि ह्यूमन ट्रायल में तो लोगों की परमिशन भी ली जाती है और कई मानक भी तय होते हैं, लेकिन एनिमल टेस्टिंग के समय पशु-पक्षियों को कैसे चुना जाता है. क्या बच्चे-बूढ़े या बीमार जानवरों को राहत मिलती है, या वे भी ट्रायल में फंस जाते हैं! और सबसे जरूरी बात, क्या एनिमल टेस्टिंग का कोई ऑप्शन खोजा जा रहा है?
किन जानवरों पर हो रहा प्रयोग आमतौर पर ह्यूमन ट्रायल से पहले हर प्रोडक्ट को पशु-पक्षियों पर टेस्ट किया जाता है. इनमें बंदर, खरगोश, चूहे, मेंढक, मछली, सुअर, घोड़े, भेड़, मछलियां और कई तरह के पक्षी शामिल हैं. पहले चिंपाजियों पर भी कई तरह की जांच होती थी, लेकिन अब ज्यादातर देशों में इसपर बैन लग चुका. ये अलग बात है कि इसके बाद भी बहुत से लैब चोरी-छिपे टेस्ट करते हैं.
कहां से मिलते हैं टेस्टिंग के लिए पशु टेस्टिंग के लिए लिए जाने वाले ज्यादातर एनिमल इसी उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं, यानी उन्हें प्रयोगों के लिए ही इस दुनिया में लाया जाता है. ऐसे पशुओं के डीलर अलग होते हैं, जिनके पास इस काम के लिए लाइसेंस होता है. इनके अलावा दूसरे डीलर भी होते हैं, जो गोपनीय तरीके से ये काम करते हैं, हालांकि सरकारी लैब ऐसे लोगों की मदद नहीं लेती है. कई जानवर सीधे जंगलों से भी उठाए जाते हैं, जिनमें चिड़िया और बंदर शामिल हैं.
कैसी होती है लैब में जिंदगी टेस्टिंग के दौरान तो पशुओं को काफी तकलीफें मिलती ही हैं, उससे पहले यानी प्री-टेस्टिंग भी वे अकेलापन और भूख झेलते हैं. आमतौर पर इन्हें स्टील के पिंजरों में रखा जाता है, जहां कंफर्ट के नाम पर कुछ नहीं होता. यहां तक कि दूसरे पशुओं पर टेस्टिंग के दौरान बाकी पशु उन्हें रोता-चीखता हुआ सुनते हैं. वैसे टेस्टिंग के दौरान जख्मी होने या मौत पर जुर्माना है, लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका पता ही नहीं लग पाता.
प्रयोग खत्म होने के बाद जानवर का क्या होता है टेस्टिंग से गुजर चुके पशु को मार दिया जाता है ताकि उसके ऊतक और अंगों की आगे जांच हो सके, लेकिन कई बार एक ही जानवर पर लगातार कई सारे टेस्ट होते हैं. इस लंबी प्रक्रिया के दौरान वे अपने-आप दम तोड़ देते हैं. वहीं ज्यादातर केस में प्रयोग के साइड इफेक्ट के कारण वे मारे जाते हैं.

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