
सबसे खुशहाल देश फिनलैंड में बढ़ रहे उदास लोग, हकीकत के कितने करीब है UN की हैप्पीनेस रिपोर्ट?
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कई सालों से फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश बना हुआ है. अगले एकाध महीने में एक बार फिर ये लिस्ट आएगी. हो सकता है कि फिन्स एक बार फिर बाजी मार जाएं. वैसे जरूरी नहीं कि जो दिख रहा है, वो सच भी हो. कई बेहद गरीब और आतंक से जूझते देश भी इस लिस्ट में ऊपर रहे. तो क्या हैप्पीनेस इंडेक्स के पैमाने गलत हैं?
पिछले सात सालों से हम जानते हैं कि फिनलैंड दुनिया का सबसे खुश देश है. अमेरिका और भारत जैसे देश परेशान मुल्कों की श्रेणी में हैं. जबकि आतंक से जूझते कई हिस्से मजे में हैं. ये दावा यूनाइटेड नेशन्स के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन्स नेटवर्क का है. ये बात अलग है कि जिन फिन्स को सबसे खुश बताया जा रहा है, वे खुद डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. तो क्या इसका मतलब ये है कि हैप्पीनेस इंडेक्स हवाहवाई है? या फिर फिनलैंड में ही कुछ बदल रहा है?
क्यों शुरू हुआ हैप्पीनेस को जांचने का सिलसिला कुछ साल पहले की बात है, जब दुनिया के बड़े नेता और पॉलिसी बनाने वाले उलझन में थे कि उनकी कोशिशों से देश की तरक्की हो रही है, बड़े घर, बड़े कारखाने बन रहे हैं. घूमने-फिरने के लिए पार्क और म्यूजियम भी हैं. लेकिन ये क्या सब जनता के लिए काफी है. क्या लोग खुश हैं? इसी का जवाब खोजने का बीड़ा उठाया यूनाइटेड नेशन्स ने.
साल 2012 में उसने एक रिपोर्ट शुरू की, जिसे नाम दिया- वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट. इससे वे यह जांचना चाहते हैं कि आखिर कौन सी चीज लोगों को खुश रखती है, जीडीपी या फिर सोशल स्ट्रक्चर. इस सोच के पीछे भी यूएन या यूएस नहीं, बल्कि एक छोटा सा देश था भूटान. सत्तर के दशक में वहां के राजा जिग्मे सिंगे वांगचुक ने यह कहकर दुनिया को चौंका दिया कि उनके लिए जीडीपी की बजाए ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस मायने रखता है. यही सोच फैलकर संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई.
अब हर साल कुछ पैमाने लेते हुए अलग-अलग देशों में सर्वे होता है और नंबरों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है.
इस रिपोर्ट में छह बड़े सवाल पूछे जाते हैं

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