
सड़कों पर हर तरफ बैनर 'राज'... जानिए कैसे रायपुर का आसमान निगल रहा है फ्लेक्स कल्चर
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रायपुर की सड़कों पर बिजली के खंभे, पेड़ और ट्रैफिक सिग्नल तक बैनरों से भर गए हैं, जो ड्राइवरों के लिए खतरा भी बन रहे हैं. नगर निगम ने अवैध फ्लेक्स हटाने और जुर्माना लगाने की कार्रवाई तेज कर दी है. पर्यावरण कार्यकर्ता बताते हैं कि ये प्लास्टिक बैनर प्रदूषण बढ़ाते हैं और पेड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. मौसम खराब होने पर ये बैनर गिरकर सड़क जाम और दुर्घटना का कारण बनते हैं.
रायपुर की सड़कों पर अब जिधर नजर उठाओ, कहीं खुला आसमान या सधी हुई सड़कें नहीं दिखतीं. आंखें सीधे चेहरों, नारों, बधाई संदेशों और बड़े-बड़े स्वागत पोस्टरों से जाकर टकराती हैं. ये बैनर हर तरफ हवा में लहराते दिखते हैं. शहर की मुख्य सड़कों से लेकर रिहायशी गलियों तक, फ्लेक्स बैनरों ने सार्वजनिक जगहों पर इस कदर कब्जा कर लिया है कि साझा नागरिक संपत्ति अब निजी प्रचार का मैदान बनती जा रही है.
छत्तीसगढ़ की राजधानी में कभी-कभार लगने वाले सूचना बोर्ड अब रोजमर्रा के अतिक्रमण में बदल चुके हैं. जन्मदिन हो, किसी नेता का दौरा, स्थानीय कार्यक्रम या फिर कोई छोटी-बड़ी उपलब्धि, हर मौके पर फ्लेक्स लगाना अब आम बात हो गई है. बिजली के खंभे, पेड़, ट्रैफिक सिग्नल, फ्लाईओवर और सड़क के डिवाइडर, सब कुछ फ्लेक्स टांगने के आसान ठिकाने बन चुके हैं. कई जगह एक ही स्थान पर दर्जनों बैनर लगे दिखते हैं जिससे अव्यवस्था साफ नजर आती है.
ड्राइवरों के लिए खतरा भी
रोजाना सफर करने वालों के लिए ये सिर्फ देखने में खराब नहीं, बल्कि खतरनाक भी है. शंकर नगर जैसे व्यस्त चौराहों पर वाहन चालकों को ट्रैफिक के साथ-साथ आंखों के सामने लटके रंग-बिरंगे पोस्टरों से भी जूझना पड़ता है. एक नियमित यात्री ने कहा,'ये फ्लेक्स ड्राइविंग के दौरान ध्यान भटकाते हैं, खासकर चौराहों पर. इसे सुंदरता कहना गलत होगा, ये सीधी-सीधी परेशानी है.'
शहर की पहचान पर सवाल
पंडरी और तेलीबांधा जैसे इलाकों के लोग कहते हैं कि रायपुर कभी एक सुसंगठित और सलीकेदार राजधानी बनने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब प्लास्टिक की परतों के पीछे उसकी पहचान दबती जा रही है. पंडरी के एक निवासी ने कहा,'रायपुर राजधानी है, लेकिन सड़कें बेतरतीब और गंदी दिखती हैं. कोई भी कहीं भी फ्लेक्स लगा देता है, रोकने वाला कोई नहीं.' एक अन्य स्थानीय व्यक्ति बोले,'चाहे किसी छोटे नेता का जन्मदिन हो या मोहल्ले का कार्यक्रम, सड़क पर फ्लेक्स लग जाते हैं और कई दिनों तक वैसे ही पड़े रहते हैं. सार्वजनिक जगहों को निजी संपत्ति समझ लिया गया है.'

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