
सचिन पायलट से ऐसी क्या खुन्नस? उन्हें रोकने के लिए हाईकमान से टकरा गए अशोक गहलोत!
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राजस्थान में मुख्यमंत्री के चयन को जिस तरह से सियासी बवंडर खड़ा हो गया है, उससे सीएम गहलोत का करियर दांव पर है. 2020 में सचिन पायलट की बगावत से अशोक गहलोत अपनी कुर्सी बचा ले गए थे, लेकिन इस बार की राह कठिन है. पायलट को सीएम की कुर्सी पर बैठने से रोकने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार हैं. गहलोत ने अपने 40 साल के सियासी करियर को भी दांव पर लगा दिया है.
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने की कवायद गांधी परिवार के लिए सिरदर्द बन गई है. अशोक गहलोत भले ही सामने नहीं आए, लेकिन उनके करीबी विधायकों ने सचिन पायलट के खिलाफ बगावती रुख अपना रखा है. सीएम के चयन के लिए कांग्रेस की ओर से बुलाई गई विधायक दल की बैठक नहीं हो सकी और आलाकमान का संदेश लेकर जयपुर गए पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे-अजय माकन खाली हाथ दिल्ली लौट आए. ये सिर्फ पायलट नहीं बल्कि सीधे-सीधे कांग्रेस हाईकमान के फैसले का विरोध है. सवाल है कि आखिर पायलट से गहलोत की ऐसी क्या खुन्नस है कि उन्हें रोकने के लिए अशोक गहलोत गांधी परिवार के खिलाफ खड़े हो गए?
राजस्थान की सियासत के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत ने अपने 40 साल के सियासी सफर में एक से एक बड़े नेताओं को मात देकर सियासी वर्चस्व बरकरार रखा है. उनके सामने किसी नेता ने अगर वाकई दमदार चुनौती खड़ी की है तो उस शख्स का नाम सचिन पायलट ही है. गहलोत भले ही 2018 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन पिछले पौने चार साल पायलट के चलते चैन की नींद नहीं सो सके. अपनी सरकार बचाने के लिए दो बार उन्हें अपने विधायकों को महीने भर तक पहरे में रखना पड़ा. यही वजह है कि गहलोत को पायलट अब बिल्कुल स्वीकार नहीं हैं.
कांग्रेस आलाकमान ने भले ही सचिन पायलट को सीएम बनाने का फैसला कर लिया हो, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत अपने सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर पायलट को छोड़कर किसी भी नेता को कुर्सी सौंपने के लिए तैयार हैं. गहलोत खेमे के तमाम विधायकों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि सचिन पायलट के बजाय किसी को भी कांग्रेस हाईकमान मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर ले, उन्हें स्वीकार है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जब कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की बात कही थी, तभी उन्हें एहसास हो गया था कि चुने जाने पर उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी होगी. गहलोत को इस बात का अंदाजा था कि उनकी जगह गांधी परिवार सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है. यही वजह रही कि अशोक गहलोत इस कोशिश में जुट गए कि राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभालें. इसके लिए उन्होंने बाकायदा प्रस्ताव भी पास कराया और भारत जोड़ो यात्रा में जाकर राहुल गांधी को मानने की कोशिश की, लेकिन वो तैयार नहीं हुए.
गांधी परिवार के प्रति वफादारी के चलते अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का नामाकंन भरने के लिए तैयार हो गए, लेकिन राजस्थान में अपने सियासी उत्तराधिकारी के मुद्दे पर पत्ते नहीं खोले. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत कर भी कोई सीएम या मंत्री रह सकता है, लेकिन राहुल गांधी ने उदयपुर संकल्प के तहत 'एक व्यक्ति एक पद' की पैरवी की तो गहलोत ने अपना स्टैंड बदल दिया. उन्होंने कहा कि 40 साल के सियासी सफर में उन्हें बहुत कुछ मिला है और नई पीढ़ी को आगे आना चाहिए.
अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव तक राजस्थान के सीएम पद पर बने रहना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन से पहले ही पार्टी आलाकमान ने जब पर्यवेक्षक भेज कर सीएम के चयन की कवायद शुरू की तो मंझे हुए गहलोत ने 'प्रोजेक्ट पायलट' भांप लिया. गहलोत निस्संदेह राजस्थान की सत्ता में बने रहना चाहते हैं, फिर चाहे खुद सीएम बने रहें या ऐसा कोई सीएम बने जो उनको स्वीकार्य हो, लेकिन कांग्रेस हाईकमान पायलट को सत्ता के सिहांसन पर बैठाने का मन बना चुका था.

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