पाकिस्तान का कप्तान जो 1971 में ढाका से भागते हुए जीप में मशीन गन लेकर बैठा था
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टीम के कप्तान इंतिखाब आलम ने अब जुगाड़ भिड़ाना शुरू किया. इस हाहाकार से भरे समय में बाहरी दुनिया से संपर्क साधने के साधन-संसाधनों की भी कमी थी. टीम के और भी खिलाड़ी भी इस जुगत में थे कि कैसे भी, किसी की भी पैरवी करके, कोई जुगाड़ लगाकर वो 'अपने देश' पहुंच सके. इंतिखाब आलम का 28 दिसंबर को जन्मदिन होता है, उनसे जुड़ा यह पूरा किस्सा पढ़िए.
1970 में पाकिस्तान में पहले आम चुनाव हुए. 162 सीटें पूर्वी पाकिस्तान में थीं और 138 सीटें पश्चिमी पाकिस्तान में. मुख्य रूप से लड़ाई भी पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की 2 पार्टियों के बीच थी. पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग और पश्चिमी पाकिस्तान की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी. 70 के इस चुनाव में शेख मुजीब-उर रहमान की आवामी लीग विजेता रही. इसने 39 प्रतिशत वोटों के साथ 160 सीटें जीतीं. ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को 85 सीटें मिलीं और ये पश्चिमी पाकिस्तान में सबसे बड़ी पार्टी बनी. इससे पहले 1969 में जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान ने संविधान को भंग कर दिया था. चुनाव के नतीजे आने के बाद उन्होंने प्लान बनाया कि मुजीब-उर-रहमान को ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के साथ मिलकर नूर-उल अमीन के अंडर काम करना होगा. नूर-उल अमीन सीनियर बंगाली राजनेता थे जो उस वक़्त पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे. याह्या खान ने नवनिर्वाचित असेम्बली को ये आदेश दिया कि उनके पास 100 दिन थे जिसमें उन्हें नया संविधान बनाना था. याह्या खान ढाका गए और देश को शेयरिंग बेसिस पर चलाने के अपने आइडिया के बारे में मुजीब-उर रहमान से बात की. मुजीब इसके पक्ष में कतई नहीं थे और वो पूरी तरह से स्वाधीन रहना चाहते थे. उनका कहना था कि पूर्वी पाकिस्तान अपने फैसले ख़ुद लेने वाला था. भुट्टो इससे कतई सहमत नहीं थे और उन्होंने याह्या खान से कहा कि पूर्वी पाकिस्तान से सभी बातचीत तुरंत रोक दी जाएं. मार्च 1971 में याह्या खान ने असेम्बली भंग करने का आदेश दे डाला. मुजीब और भुट्टो के बीच बातचीत की और भी कोशिशें असफल रहीं. मुजीब-उर रहमान ने सविनय अवज्ञा और हड़तालों का ऐलान कर दिया जिसे पूर्वी पाकिस्तान में भरपूर समर्थन मिला. याह्या खान ने मुजीब को गद्दार घोषित कर दिया और पाकिस्तानी सेना को पूर्वी पाकिस्तान को अपने कब्जे में लेने का आदेश दे दिया. जिस वक़्त पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान की ओर कूच कर रही थी, उधर से एक फ़्लाइट ने उड़ान भरी और कराची आकर उतरी. ये 1971 के उस युद्ध से पहले की आख़िरी फ़्लाइट थी जो पूर्वी पाकिस्तान से निकली थी. इसमें 18 साल का एक लड़का बैठा था जो अंडर-19 क्रिकेट खेलकर आ रहा था. सिविल वॉर शुरू होते ही ये अंडर-19 टूर्नामेंट बीच में ही बंद कर दिया गया था. ये टूर्नामेंट भी बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फ़ॉर क्रिकेट इन पाकिस्तान (BCCP) ने आनन-फानन में चालू करवाया था जिसमें दोनों ओर के पाकिस्तान की अंडर-19 टीमें खेल रही थीं. जिस 18 साल के लड़के का ज़िक्र हुआ, वो आगे चलकर विश्व-विजेता कप्तान और फिर देश का प्रधानमंत्री बना - इमरान ख़ान.
पूर्वी पकिस्तान में जो हो रहा था, सो हो रहा था. इधर कराची में एक नयी सीरीज़ का पहला मैच खेला जा रहा था. ये मैच था पाकिस्तान (टीम का नाम था BCCP XI) और इंटरनेशनल XI के बीच. इंटरनेशनल XI ब्रिटिश और पाकिस्तानी खिलाड़ियों की मिली-जुली टीम बनी थी. इंग्लैण्ड के कप्तान मिकी स्टीवर्ट इसकी अगुवाई कर रहे थे. पहले मैच की दूसरी पारी में इंतिखाब आलम ने 30 रन देकर 6 विकेट लिये. पहली पारी में वो 3 विकेट ले चुके थे. उनकी लेग-स्पिन ने इंटरनेशनल साइड को मुंह उठाने का मौका भी नहीं दिया और BCCP की टीम ये मैच जीत गयी.
राजनीतिक परिस्थितियों को देखने के बावजूद, दूसरा मैच ढाका में रख दिया गया. असल में, इसमें पूर्वी पाकिस्तान की युवा आबादी को लुभाने का एक दांव भी था. पाकिस्तानी बोर्ड ने एक बांग्लादेशी लड़के रकीबुल हसन को टीम में जगह दी. रकीबुल ढाका यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था. टीम में पूर्वी पाकिस्तान के खिलाड़ी भी थे लेकिन रकीबुल बंगाली था इसलिये उसकी अलग अहमियत थी. बोर्ड भले ही मिलनसार दिखने और भलमनसाहत ज़ाहिर करने के मकसद से उसे टीम में जगह दे रहा था, रकीबुल झांसों में नहीं आने वाला था. टीम में आने के बाद वो पश्चिमी हिस्से से आने वालों से कहने लगा कि जब अगली दफ़ा वो ढाका आयेंगे तो उन्हें वीज़ा लेना होगा. जब वो बल्लेबाज़ी की शुरुआत करने गया तो उसके बल्ले पर बांग्लादेश का नक्शा चिपका हुआ था.
क्लिक करें: बाबर आजम हैं क्रिकेट के नए किंग! सेंचुरी जमाकर तोड़ दिए कई रिकॉर्ड ऐसी स्टंटबाज़ी के बाद रकीबुल 1 रन पर एलबीडब्लू आउट हो गया. पाकिस्तान की टीम 200 रन पर निपट गयी. जवाब में ओपनर रॉय वर्जिन ने अकेले 152 रन जड़ दिए. टीम ने कुल 378 रन बनाये. दूसरी पारी में पाकिस्तान की टीम कुछ सम्मानजक स्थिति में पहुंचने की कोशिश कर रही थी. अज़मत राणा ने शतक तो मारा लेकिन 8 विकेट गिरते-गिरते पाकिस्तानी साइड महज़ 128 रन ही आगे पहुंच पायी थी. 1 मार्च 1971 को BCCP XI के वसीम बारी 7 और सरफ़राज़ नवाज़ 3 के व्यक्तिगत स्कोर पर जैसे-तैसे टिके हुए थे. और इसी मौके पर तस्वीर बदलनी शुरू हुई. रेडियो पर ख़बर आयी कि याह्या खान ने नेशनल असेम्बली को भंग कर दिया था. हर कोई समझ गया था कि राजनीतिक धरातल पर मामला सुलटने की आख़िरी आस भी जा चुकी थी. जो दर्शक अभी तक क्रिकेट का मज़ा ले रहे थे, तालियां पीट रहे थे और सीटी मार रहे थे, अचानक गर्म हो गए. दर्शकों को चियर करने वाली आवाज़ें भुनभुनाहट और फिर गुस्से में पगी चीखों में बदल गयीं. देखते ही देखते वहां लगे तम्बू में आग लगायी जा चुकी थी. मैदान में खड़े खिलाड़ियों पर पत्थर, बोतल आदि चीज़ें फेंकी जा रही थीं. और इस सब के बीच, दर्शक मैदान में घुस आये. टीमें ख़ुद को बचाने के लिये ड्रेसिंग रूम में भागीं. इंटरनेशनल साइड फ़ील्डिंग कर रही थी, उसके सभी खिलाड़ी भागे. वसीम बारी और सरफ़राज़ भी पवेलियन की ओर दौड़े. भागने से पहले मैदान पर एक छात्रनेता और इंटरनेशनल साइड के कप्तान मिकी स्टीवर्ट के बीच ये बातचीत हुई -
छात्रनेता - "आपके किसी भी खिलाड़ी को कोई खतरा नहीं है. लेकिन हम ये मैच आगे बढ़ने नहीं देंगें. हम प्रदर्शन कर रहे हैं क्यूंकि भुट्टो ने हमारे नेता से बातचीत के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं." मिकी स्टीवर्ट - "क्या आप थोड़ी देर रुक नहीं सकते हैं? हमें बस 2 विकेट लेने हैं और फिर थोड़े से रन बनाने होंगे." मिकी को जवाब संतोषजनक नहीं मिला. इतनी देर में बढ़ती भीड़ को देखकर वो और भी तेज़ी से पवेलियन की ओर लपके. जिस खिलाड़ी को जहां जगह मिली, वो वहां दुबक गया. अंग्रेज़ खिलाड़ी पाकिस्तानी खेमे के साथ बैठे हुए थे. अफरा-तफ़री का माहौल था और किसी कोई कुछ नहीं मालूम था कि आगे क्या होने वाला था. दो घंटे के बाद सेना की एक बड़ी गाड़ी आयी जिसमें सभी विदेशी खिलाड़ियों को बिठाया गया. उन्हें सेना के एक कैम्प ले जाया गया जहां उन्हें फ़्लाइट का इंतज़ाम होने तक रखा गया. रात में उन्हें लाहौर रवाना कर दिया गया.
पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ स्थिति गड़बड़ थी. पूर्वी पाकिस्तान के छात्र, जो मैदान में घुस आये थे, स्टेडियम के बाहर की दुकानों को आग के हवाले कर चुके थे, पश्चिमी हिस्से से आये हुए खिलाड़ियों की फ़िराक में थे. इंतिखाब आलम, सरफ़राज़ नवाज़ वगैरह ड्रेसिंग रूम से सब नज़ारा देख रहे थे. भीड़ के गुस्से को देखकर वो सहमे हुए थे. सरफ़राज़ नवाज़ ने सेना के एक जवान से कहा कि इस पहले वो भीड़ उनकी लिंचिंग कर दे, वो उसकी दिशा में गोलियां चला दें. इसके बदले में उस जवान ने अपनी बन्दूक सरफ़राज़ पर ही तान दी. हर कोई समझ चुका था कि स्थिति कभी भी हाथ से निकल सकती थी. पाकिस्तानी खिलाड़ी कई घंटों तक ड्रेसिंग रूम में ही दुबके रहे. अंधेरा होते-होते एक मिलिट्री ट्रक आया जो उन्हें शहर के बीच स्थित पुरबानी होटल ले गया. यहां टीम को सख्त निर्देश दिए गए थे कि वो बहार कहीं जाना तो दूर, अपना कमरा भी न छोड़ें.
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