दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षिका ने शुरू की 'वन टीचर-वन कॉल' मुहिम, PM मोदी भी हुए मुरीद
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दिव्यांग बच्चों को 'वन टीचर वन कॉल' मिशन से जोड़ने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपना हथियार बनाया. इससे बरेली के अलावा पीलीभीत, हरदोई, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर, अयोध्या समेत कई जिलों से शिक्षक इनकी इस योजना से जुड़ चुके हैं और दिव्यांग बच्चों का प्रवेश कराने के लिए भी आगे आने लगे.
एक अकेली शिक्षिका ने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए. यह कहानी है उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गंगापुर की. यहां के डभौरा प्राथमिक विद्यालय की सहायक शिक्षिका दीपमाला पांडे ने कई स्पेशल बच्चों को शिक्षा की लिए नई ज्योत जगाई है. उन्होंने दिव्यांग बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए 'वन टीचर-वन कॉल' अभियान शुरू किया.
उन्होंने इसके लिए फेसबुक को अपना माध्यम बनाया और जिले के शिक्षकों को इस योजना से जोड़ा. अब तक अपनी इस पॉलिसी के तहत वह लगभग 600 दिव्यांग बच्चों को स्कूल तक पहुंचा चुकी हैं. धीरे-धीरे इनकी लिस्ट में बच्चों की संख्या का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. आलम यह है कि जिले के तमाम अन्य शिक्षक भी उनसे जुड़कर दिव्यांग बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए आगे आ रहे हैं. दीपमाला बताती हैं कि इनकी इस योजना को शुरू किए हुए 13 वर्ष हो चुके हैं और अब धीरे-धीरे इस योजना में कई शिक्षक भी जुड़ रहे है.
आज तक याद है अनमोल का चेहरा प्राथमिक विद्यालय डभौडा गंगापुर में तैनात दीपमाला ने बताया कि बात करीब 13 साल पुरानी है. उन्होंने देखा कि अनमोल नाम का एक बच्चा जो कि दिव्यांग था, वह अन्य बच्चों को देखकर पढ़ाई करना चाहता था लेकिन यह इतना आसान नहीं था. ऐसे में उन्होंने बच्चों को पढ़ाई के प्रति आगे बढ़ाने के लिए खुद कई पुस्तकें खरीद कर दीं और संकेत भाषा भी सिखाई. अनमोल जल्दी ही संकेत भाषा में पढ़ाई करना सीख गया. तब से उन्होंने बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिज्ञा कर ली.
NCERT में समाजसेवी शिक्षा का लिया प्रशिक्षण दीपमाला ने बताया कि उन्होंने इसके लिए एनसीईआरटी मैथ समाजवेशी शिक्षा का प्रशिक्षण भी लिया है. बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उन्होंने आगे भी अभियान चलाया और अन्य शिक्षकों से भी इस बारे में अपील की. लक्ष्य सिर्फ इतना था कि एक शिक्षक यदि एक ही दिव्यांग बच्चे की जिम्मेदारी ले ले, तो जिले भर में करीब 3000 दिव्यांग बच्चों को मुख्यधारा में लाया जा सकता है. इसके लिए बकायदा BRC के सहयोग से प्रोफेशनल लर्निंग कोर्स की ट्रेनिंग सम्मानित शिक्षकों को दिलाना शुरू की गई ताकि वे बच्चों को आसानी से पढ़ा सकें.
सोशल मीडिया को बनाया है अपना हथियार दिव्यांग बच्चों को 'वन टीचर वन कॉल' मिशन से जोड़ने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपना हथियार बनाया. इससे बरेली के अलावा पीलीभीत, हरदोई, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर, अयोध्या समेत कई जिलों से शिक्षक इनकी इस योजना से जुड़ चुके हैं और दिव्यांग बच्चों का प्रवेश कराने के लिए भी आगे आने लगे हैं. धीरे-धीरे साकेत विद्यालय में बच्चों की संख्या में भी इजाफा होने लगा है.
पहले शिक्षक दिव्यांग बच्चों से कतराते थे यह समय भी गुजरे हुए अधिक समय नहीं हुआ है जब शिक्षक दिव्यांग बच्चों को शिक्षा देने के लिए कतराते थे, लेकिन अब वही शिक्षक दिव्यांग बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में हर संभव कोशिश कर रहे हैं. बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों को भी स्कूल तक पहुंचाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि 1 टीचर 1 कॉल पॉलिसी से धीरे-धीरे तमाम शिक्षक जुड़ रहे हैं.
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