
खरीदने वाले का नाम, कितना चंदा दिया और किस पार्टी को मिला... इलेक्टोरल बॉन्ड पर 3 हफ्ते में ये जानकारियां सार्वजनिक करनी होंगी
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अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए. फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, 'याचिकाएं निम्नलिखित मुद्दे उठाती हैं - क्या चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े फैसले में चुनावी बाॉन्ड योजना को 'असंवैधानिक' करार दिया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि यह योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत 'सूचना के अधिकार' और 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का उल्लंघन करती है. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द करने का फैसला सुनाने वाली पांच जजों की संविधान पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.
शीर्ष अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद करने और इस योजना के तहत अब तक राजनीतिक पार्टियों को प्राप्त चंदे का विवरण भारत के चुनाव आयोग के साथ साझा करने का निर्देश दिया. बता दें कि एसबीआई को सरकार ने चुनावी बॉन्ड जारी करने के लिए अधिकृत किया था. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी अब तक जारी सभी इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में जानकारी पब्लिश करने होगी. मसलन, किसने कितने चुनावी बॉन्ड खरीदे, किस राजनीतिक पार्टी ने कितने चुनावी बॉन्ड भुनाए और उसे ये चुनावी बॉन्ड किस दानकर्ता से मिले, ये सारी जानकारियां देनी होंगी.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भारतीय निर्वाचन आयोग को 13 मार्च, 2024 तक सभी राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड से प्राप्त चंदे के बारे में डेटा प्रकाशित करने के लिए भी कहा है. अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए. फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, 'याचिकाएं निम्नलिखित मुद्दे उठाती हैं - क्या चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.
सूचना के अधिकार के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सीजेआई ने कहा, 'अदालतों ने माना है कि नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है. सूचना के अधिकार के विस्तार का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र (Participatory Democracy) के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है. राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है. पैसे और मतदान के बीच सांठगांठ के कारण राजनीतिक फंडिंग करने वालों को सरकारों तक पहुंच मिलती है...इस पहुंच से नीति निर्माण प्रभावित होता है'.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बॉन्ड में निहित गोपनीयता सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए कहा, 'राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता के बदले लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था हो सकती है. चुनावी बॉन्ड योजना काले धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं है. अन्य विकल्प भी हैं. काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. राजनीतिक दलों को फाइनेंशियल फंडिंग के पीछे दो मंशा हो सकती है- एक राजनीतिक दल का समर्थन करना, या वित्तीय योगदान के बदले लाभ प्राप्त करना'. हालांकि पीठ ने आगे यह भी कहा कि सभी पॉलिटिकल डोनेशन पब्लिक पॉलिसी को प्रभावित करने के इरादे से नहीं किए जाते हैं.

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