कोहिनूर को 'जीत की निशानी' के तौर पर डिस्प्ले करेगा ब्रिटिश राजघराना... जानें भारत से लंदन कैसे पहुंचा ये हीरा?
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तीन जुलाई 1850 को कोहिनूर को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया. इस हीरे को फिर काटा गया और तब उसका वजन घटकर 108.93 कैरेट हो गया. तब ये महारानी के ताज का हिस्सा बना. अभी इसका वजन 105.6 कैरेट है.
दुनिया का सबसे मशहूर और बेशकीमती 'कोहिनूर' हीरा को ब्रिटेन 'जीत की निशानी' के तौर पर दिखाने जा रहा है. इसे टावर ऑफ लंदन में डिस्प्ले किया जाएगा, जिसे इस साल मई में पब्लिक के लिए खोला जाएगा.
दरअसल, इस साल मई में ब्रिटेन में किंग चार्ल्स III की ताजपोशी होनी है. इस दौरान उनकी पत्नी क्वीन कंसॉर्ट कैमिला कोहिनूर हीरे से जड़ा ताज नहीं पहनेंगी.
ब्रिटेन के महलों का रखरखाव करने वाली चैरिटी हिस्टोरिक रॉयल पैलेसेज (एचआरपी) का कहना है कि न्यू ज्वेल हाउस एग्जिबिशन कोहिनूर के इतिहास के बारे में बताएगी. कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की दिवंगत क्वीन एलिजाबेथ II की मां के ताज में लगा है और इस ताज को टावर ऑफ लंदन में ही रखा जाएगा.
एचआरपी का कहना है कि दिवंगत क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की मां क्वीन मदर के ताज में जड़े इस कोहिनूर के इतिहास की जानकारी को साझा किया जाएगा. विजुअल प्रोजेक्शन और ऑब्जेक्ट्स के जरिए इस कोहिनूर के इतिहास की जानकारी दी जाएगी. कोहिनूर मुगल साम्राज्य, ईरान के शाह, अफगानिस्तान के अमीर और सिख महाराजों के आधिपत्य से निकलकर किस तरह ब्रिटेन पहुंचा इस इतिहास को साझा किया जाएगा.
कोहिनूर का फारसी भाषा में अर्थ है माउंटेन ऑफ लाइट. महाराजा रणजीत सिंह के आधिपत्य से यह कोहिनूर क्वीन विक्टोरिया तक पहुंचा और इस हीरे ने ब्रिटेन शासन के वर्चस्व में एक अहम भूमिका निभाई. टॉवर ऑफ लंदन के रेजिडेंट गवर्नर और ज्वेल हाउस के कीपर एंड्रयू जैक्सन ने बताया कि हम 26 मई से नया ज्वेल हाउस खोलने जा रहे हैं, जिसे लेकर हम उत्साहित हैं. इससे लोगों को शाही आभूषणों के बारे में पता चल सकेगा.
ऐसे में ये जानते हैं कि कोहिनूर हीरे का इतिहास क्या है? ये हीरा भारत से लंदन तक कैसे पहुंच गया? और क्या ये हीरा कभी भारत आ सकता है या नहीं?