एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में अपने पांव क्यों पसार रहा है NATO? क्या है रणनीति और भारत के लिए क्या हैं इसके मायने
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भारत हमेशा से एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत करता रहा है. इसके लिए जरूरी है कि भारत के मित्र मुल्क इस क्षेत्र में मिलकर काम करें. लिथुआनिया में शुरू हुए नाटो (NATO) शिखर सम्मेलन में विशेष रुप से आमंत्रित एशिया-प्रशांत के चार नेताओं की मौजूदगी चर्चा का विषय है. आइए जानते हैं भारत को इससे कैसे फायदा होगा.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ग्लोबल हालात बदले हैं. अब दुनिया के दिग्गज संगठनों की बैठक और उससे जुड़ी हलचलों पर रणनीतिकारों और टिप्पणीकारों की पैनी नजर रहती है. मंगलवार को लिथुआनिया में शुरू हुए नाटो (NATO) शिखर सम्मेलन भी कूटनीतिक विशेषज्ञों और स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट की निगाहों से बचा नहीं है.
इस सम्मेलन में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रूस के खिलाफ यूक्रेन को नाटो द्वारा सैन्य समर्थन देना है. इसके अलावा यूक्रेन को नाटो की मेंबरशिप देने पर भी चर्चा हो रही है. लेकिन इससे इतर नाटो सम्मेलन के एक ऐसे मुद्दे ने विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है जिसका हित भारत और एशिया-पैसिफिक से जुड़ा है.
इस बार के एशिया पैसिफिक सम्मेलन में विशेष रुप से आमंत्रित एशिया-प्रशांत के चार नेताओं की मौजूदगी चर्चा का विषय है. ये नेता हैं- ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री एंथनी अल्बनीस, न्यूजीलैंड के प्रधान मंत्री क्रिस हिपकिंस, जापानी प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यूं सुक येओल.
ये लगातार दूसरी बार है कि ये चार नेता इस सम्मेलन में मौजूद हैं. पिछले साल मैड्रिड में भी इन चार नेताओं ने अपनी मौजूदगी से लोगों का ध्यान खींचा था. हालांकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नाटो का आउटरीच प्रयास अभी भी प्रारंभिक चरण में हैं, लेकिन नाटो की इन कोशिशों की दुनिया के कुछ नेताओं ने तीखी आलोचना की है. नाटो की इस कोशिश का चीन ने सबसे ज्यादा विरोध किया है और कहा है कि बीजिंग के अधिकारों के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी कार्रवाई का कड़ा जवाब दिया जाएगा.
वहीं पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री पॉल कीटिंग ने एशिया पैसिफिक में पैर पसारने की नाटो की कोशिशों के लिए NATO के महासचिव स्टोलटेनबर्ग को "सर्वोच्च मूर्ख" कहा था. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन कथित तौर पर टोक्यो में प्रस्तावित नाटो कार्यालय खोलने के विरोध में हैं.
अभी नाटो का पूरा फोकस यूक्रेन पर है, बावजूद इसके इसका एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में रूचि लेना कुछ सवाल खड़े करता है. ये प्रश्न ये है कि ये चार नेता यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों के शिखर सम्मेलन में नियमित रूप से क्यों शामिल हो रहे हैं? बता दें कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया ये चारों देश एशिया प्रशांत के देश हैं.
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