BBC डॉक्यूमेंट्री पर रोक के खिलाफ SC में याचिका, जानिए क्या हैं सरकार की इमरजेंसी शक्तियां...
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गुजरात दंगों पर BBC डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर रोक का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इनमें केंद्र द्वारा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को चुनौती दी गई है. साथ ही 'दंगों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों' के खिलाफ भी जांच की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 6 फरवरी को सुनवाई होगी.
देश में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद थम नहीं रहा है. केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर वीडियो लिंक ब्लॉक करने के आदेश दिए तो राजनीतिक दलों के नेताओं ने खुली आलोचना शुरू कर दी. कॉलेज के छात्र विरोध में उतर आए. कई यूनिवर्सिटी में स्क्रीनिंग के आरोप में छात्रों को हिरासत में लिया गया है. और अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गई हैं. ये सारा विवाद पिछले दो हफ्ते से तेजी से चर्चा में आया. आईए जानते हैं इमरजेंसी की स्थिति में सरकार की शक्तियों के बारे में...
बता दें कि पिछले दिनों सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने कथित तौर पर संबंधित कंटेंट को ब्लॉक करने के लिए YouTube और Twitter समेत सोशल मीडिया साइटों को आदेश जारी किया था. इसमें केंद्र सरकार ने मुख्य रूप से डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए थे, जिसके खिलाफ हंगामा शुरू हुआ है.
आईटी नियमों के तहत इमरजेंसी ब्लॉकिंग पावर क्या हैं...
भारत में विदेशी सरकारों के कार्यों के संबंध में कथित रूप से निराधार आरोप लगाने और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार पर आक्षेप लगाने के लिए बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को हटाने का निर्देश दिया गया है. ऐसा करने की शक्ति सूचना प्रौद्योगिकी नियमों से ली गई है. आपातकालीन प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के प्रावधानों के तहत आपातकालीन स्थितियों में कंटेंट को हटाने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर सकता है, जहां देरी स्वीकार्य नहीं है.
इस प्रावधान के तहत कंटेंट को हटाने के लिए MIB सोशल मीडिया मीडिएटर्स को नोटिस जारी करने की शक्ति रखता है. नियम 16 के अनुसार, आपात स्थिति में सचिव, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय यदि संतुष्ट हैं कि यह आवश्यक या समीचीन और न्यायोचित है, तो वो किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी जानकारी या उसके हिस्से तक सार्वजनिक पहुंच के लिए ब्लॉकिंग जारी कर सकते हैं.
'प्रकाशकों और बिचौलियों को आदेश दिए जा सकते हैं'
नायडू पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बने और उसके बाद दो और कार्यकाल पूरे किए. मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले दो कार्यकाल संयुक्त आंध्र प्रदेश के नेतृत्व में थे, जो 1995 में शुरू हुए और 2004 में समाप्त हुए. तीसरा कार्यकाल राज्य के विभाजन के बाद आया. 2014 में नायडू विभाजित आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उभरे और 2019 तक इस पद पर रहे. वे 2019 का चुनाव हार गए और 2024 तक विपक्ष के नेता बने रहे.
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