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40 साल में ढाई गुना बढ़ गई आबादी फिर 1971 की जनसंख्या के आधार पर होता है राष्ट्रपति चुनाव, जानिए वजह
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देश में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. चुनाव आयोग के मुताबिक नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 29 जून है. एक दिन बाद 30 जून को नामांकन पत्रों की जांच होगी और 2 जुलाई तक उम्मीदवार नामांकन वापस ले सकेंगे.
राष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर औपचारिक घोषणा हो चुकी है, जिसके बाद नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. ऐसे में क्या आप जानते हैं राष्ट्रपति पद के चुनाव में विधायक या सांसद जो वोट करेंगे, उस वोट की वैल्यू मौजूदा जनगणना पर नहीं बल्कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की जाती है. 1971 से लेकर अब तक इन 51 सालों में देश की आबादी करीब ढाई गुना बढ़ गई. इस दौरान चार बार जनगणना भी हो चुकी है. अगर ये 1971 की जगह ताजा जनगणना के आधार पर हों, तो पूरी तस्वीर ही पलट सकती है.
1971 की जनगणना के आधार पर राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की वैल्यू के नियम को मानें इसलिए संविधान में संशोधन तक कर दिया गया. इस संविधान संशोधन के पीछे दक्षिण भारत के राज्यों की नाराजगी भी एक वजह है. इनकी नाराजगी किस बात पर थी, इसे समझने के लिए मैं आपको 1950 के दौर में ले चलता हूं, जब देश गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी की हवा में सांस ले रहा था, लेकिन उस समय देश के रहनुमाओं के सामने देश को खड़ा करने के साथ-साथ कई समस्याओं को दूर करने की चुनौतियां थीं. इनमें एक सबसे बड़ी चुनौती देश की बढ़ती आबादी थी.
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आबादी के सिद्धांत की ऐसे तैयार हुई भूमिका
समस्या बड़ी थी इसलिए बिना समय गंवाए 1950 के दशक में ही राज्य प्रायोजित परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू कर दिया गया. भारत ऐसा करने वाला विकासशील देशों में पहला देश था. जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू करने में दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत के राज्यों से आगे निकलने लगे. वहां, 60 के दशक में ही जनसंख्या नियंत्रित होने लगी. इसके बाद ऐसी दिक्कत आई, जिसने संविधान में लिखे आबादी के सिद्धांत को ही खारिज कर दिया.
1971 की जनगणना प्रकाशित होने के बाद दक्षिण भारत के नेताओं का प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने अपनी एक समस्या लेकर पहुंचा. उन्होंने कहा कि हम लगातार राज्यों की आबादी पर नियंत्रण कर रहे हैं, लेकिन उत्तर भारत के बीमारू राज्य जनसंख्या नियंत्रण के लिए संजीदा नहीं दिखाई दे रहे हैं. यहां आबादी बढ़ती जा रही है. ऐसे में देखा जाए तो जिस राज्य की आबादी जितनी ज्यादा है, वहां के विधायकों के वोटों की वैल्यू उतनी ही ज्यादा है. ऐसे में वे राज्य जो आबादी पर नियंत्रण कर रहे हैं, उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा.
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