साइरस मिस्त्री का 'मुगल-ए-आज़म' कनेक्शन, 16 साल में बनी थी सबसे बड़े बजट की फिल्म
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इंडियन सिनेमा का मैग्नम ओपस यानी 'मुगल-ए-आज़म'... डायरेक्ट के. आसिफ, कलाकार पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला. ये सब एक साथ पर्दे पर कभी नहीं आ पाते, अगर साइरस मिस्त्री का परिवार ना होता. 16 साल में बनी इस फिल्म इस फिल्म से उनका एक बेहद करीबी रिश्ता है.
'प्यार किया तो डरना क्या....' बेल्जियम से मंगाए शीशों से बने शीश महल में फिल्माया गया 'मुगल-ए-आज़म' का ये गाना जब फिल्मी पर्दे पर दिखता है, तो किसी पेंटिंग की तरह जेहन में घर कर जाता है. इस गाने को अमर बनाने में नौशाद की मधुर धुन और लता मंगेशकर के सुरीले सुर के साथ-साथ मधुबाला के डांस, पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार की कमाल की अदायगी और के. आसिफ का बारीक निर्देशन का ही योगदान नहीं था. बल्कि साइरस मिस्त्री का परिवार भी था, जिसने इस फिल्म को सिर्फ के. आसिफ का ही नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा का भी 'मैग्नम ओपस' बना दिया.
देश के बंटवारे से अटकी फिल्म
जी हां, टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का इस फिल्म से गहरा जुड़ाव है. देश की आजादी से पहले 1944 में जब के. आसिफ ने 'मुगल-ए-आज़म' बनाने का प्लान बनाया, तब इसकी स्टारकास्ट बिलकुल अलग थी. साल 1946 में इस फिल्म का पहला शूट हुआ और चंद्रमोहन, डी. के. सप्रु फिल्म में काम कर रहे थे. पर कहते हैं ना, जिसको जहां पहुंचना होता है पहुंच ही जाता है. वैसा ही कुछ 'मुगल-ए-आज़म' के साथ हुआ. इस फिल्म के निर्माता शिराज अली थे, जो 1947 में बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए. उसके बाद इस फिल्म में कोई हाथ डालने को तैयार नहीं हुआ और यहीं पर एंटी हुई साइरस मिस्त्री के परिवार यानी शापूरजी पालोनजी ग्रुप की.
पानी की तरह बहाया गया पैसा
16 साल के लंबे अंतराल में बनी 'मुगल-ए-आज़म' में आखिरकार पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला फाइनल हुए, और 1960 में ये रिलीज हुई. लेकिन 16 साल का ये सफर इतना आसान नहीं रहा. के. आसिफ फिल्म बनाने के लिए अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख चुके थे, लेकिन सही मायनों में 'मिस्टर परफेक्शनिस्ट' के. आसिफ इस फिल्म को इतना ऑथेंटिक बनाना चाहते थे कि इसके शीशमहल को बनाने के लिए कांच बेल्जियम से आए, तो फिल्म में एक जगह पर हीरों को गिराने का सीन फिल्माने के लिए असली हीरे मंगाए गए़.
किस्तों में जुटाए गए असली हीरे
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