
शशि थरूर के लिए क्या केरल में बीजेपी के दरवाजे खुलने वाले हैं?
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पीएम नरेंद्र मोदी की कई बार तारीफ हो या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ने की नाराजगी हो, जो भी है इतना तय है कि शशि थरूर को कांग्रेस में किनारे लगाया जा रहा है. आखिर थरूर के पास क्या रास्ते हैं?
केरल में अगले साल यानि 2026 अप्रैल में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. इस बीच केरल कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर है. सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस नेता शशि थरूर जैसा इंटलेक्चुअल, संतुलित और समझदार चेहरा अगर नाराज दिख रहा है तो मतलब साफ है कि पार्टी में उन्हें महत्व नहीं मिल रहा है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर का ये कहना कि पार्टी के लिए वह उपलब्ध हैं, लेकिन पार्टी को मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं तो मेरे पास विकल्प भी है. थरूर का यह बयान दिखाता है कि उन्हें दिल से किसी बात की पीड़ा हुई है. वो कहते हैं कि कांग्रेस विरोधी भी मुझे वोट देते हैं. मैं आरामदायक जिंदगी छोड़कर यहां आया था. वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के आग्रह पर संयुक्त राष्ट्र में कार्यकाल पूरा होने पर भारत आया था. इस तरह के बयान के बाद ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया है. जाहिर है कि यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा सेटबैक साबित हो सकता है.पर सवाल उठता है कि कांग्रेस के नुकसान से किसको फायदा होगा? जाहिर है कि शशि थरूर की इस नाराजगी से लेफ्ट से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी की आखों में चमक दिख रही है. आइए देखते हैं कि वे क्या कारण है कि थरूर के लिए बीजेपी में उम्मीद की किरणें ज्यादा हैं.
1-केरल की राजनीति में कांग्रेस- हिंदू वोट और थरूर
केरल की राजनीति में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोट तो मिलते ही हैं पर हिंदुओं का सपोर्ट भी वामपंथियों के मुकाबले कांग्रेस को मिलता रहा है. जिन लोगों को 2024 के लोकसभा चुनावों का कैंपेन याद होगा उन्हें याद होगा कि किस तरह कांग्रेस यहां ऐसे मुद्दों से बच रही थी जिसके चलते उन्हें मुसलमानों का हितैषी न साबित किया जा सके. राहुल गांधी की रैली से मुस्लिम लीग को दूर रखना रहा हो या सीएए का विरोध, कांग्रेस यहां फूंक फूंक कर कदम रख रही थी. केरल की सत्तारूढ़ वामपंथी पार्टी बराबर कांग्रेस को चैलेंज करती थी कि वो सीएए पर अपना रुख क्यों नहीं क्लियर कर रही है. केरल की वामपंथी सरकार ने सीएए को सर्वोंच्च न्यायालय में चैलेंज किया था. मुख्यमंत्री पिनराय विजयन अपनी सभाओं में कहा करते थे कि आखिर कांग्रेस शासित राज्य ऐसा क्यों नहीं करते. विजयन याद दिलाते कि राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा के दौरान कभी भी सीएए कानून का विरोध करते नहीं दिखे. दरअसल वामपंथी मुसलमानों के बीच यह साबित करना चाहते थे कि उनके असली हितैषी हम हैं. कांग्रेस इसलिए यहां सीएए के मुद्दे को नहीं उठा रही थी क्योंकि उसे डर था कि हिंदू उन्हें अपना विरोधी मान लेंगे.
केरल में बीजेपी के साथ यही संकट है कि हिंदू बीजेपी की बजाए अभी कांग्रेस के साथ हैं. जाहिर है कि केरल में बीजेपी को एक मजबूत चेहरा चाहिए. थरूर जैसा नेता अगर बीजेपी को केरल में मिल जाता है तो जो हिंदू कांग्रेस को वोट करते आएं हैं उन्हें बीजेपी की ओर लाना आसान होगा. थरूर को लेकर बीजेपी कुछ बड़ी प्लानिंग कर सकती है.
2-कांग्रेस से आए नेताओं को बीजेपी में मिल रही तवज्जो
एक समय था कि भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस से आए नेताओं को बहुत तवज्जो नहीं मिलती थी, पर अब पहले जैसी बात नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमंता बिस्व सरमा, रवनीत सिंह बिट्टू जैसे दर्जनों नाम हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आकर भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बन चुके हैं. बीजेपी ने उन्हें पर्याप्त मौका दिया है. यही नहीं आज की तारीख में बीजेपी ऐसे भी कांग्रेसी आए हैं जो पीएम नरेंद्र मोदी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं. पर अब बीजेपी में हैं और उनमें से कई मंत्रिमरिषद के चेहरे भी हैं. जबकि शशि थरूर ने कभी भी पीएम मोदी के लिए कोई ऐसी बात नहीं कि जिनके चलते उन्हें शर्मिंदा होना पड़े. इसके उलट थरूर ने कई बार पीएम मोदी की तारीफ की है. यही तारीफ उनके लिए भारी पड़ती रही है.

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