
वो दौर जब टीम इंडिया 13 खिलाड़ियों से लड़ती थी… विनीत गर्ग ने खोले घटिया अंपायरिंग के किस्से
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क्रिकेट का का खेल अंपायरों के बिना मुमिकन नहीं. मगर कई बार अंपायरों के फैसले भारतीय टीम के खिलाफ जाते रहे. सुनील गावस्कर ने अपनी किताब में इसका ज़िक्र किया है. कॉमेंटेटर विनीत गर्ग ने बल्लाबोल पॉडकास्ट में खराब और पक्षपाती अंपायरों के क़िस्से सुनाए. ब्रायन लारा ने अंपायर पर दबाव डालकर धोनी को कैसे आउट करवाया, डेविड शेफर्ड ने एकबार मजाक मजाक में उन्हें क्या बताया और IPL के आने से तस्वीर कैसे बदली.
क्रिकेट में अंपायर का रोल उतना ही अहम है, जितना किसी अदालत में जज का. अंपायर ही इस खेल की सुप्रीम अथॉरिटी हैं. हम सब शुरुआत से सुनते आए हैं - अंपायर्स डिसिजन इज द लास्ट डिसिजन! खिलाड़ियों को चाहे-अनचाहे अंपायर्स के निर्णय को सिर झुकाकर मानना ही पड़ता है. ज्यादा तीन-तेरह करने पर डिमेरिट पॉइंट्स चुकाना पड़ता है या मैच फीस की आहुति देनी पड़ती है.
मगर अंपायर भी इंसान होते हैं और उनसे भी गलतियां होती रही हैं. क्रिकेट का इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से पटा पड़ा है जब अंपायर के फैसलों पर भौहें तनी हैं, उंगलियां उठी हैं. कई बार उनके फैसले से पक्षपात की बू आती रही है. यही कारण है कि ICC ने अंपायरिंग के स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाए हैं. नब्बे के दशक में आईसीसी ने ज्यादा से ज्यादा न्यूट्रल अंपायर्स तैनात करने पर जोर देना शुरू किया. गलती की बारंबारता को कम करने के लिए पिछले एक-डेढ़ दशक से DRS जैसी चीज लाई गई. कहना होगा कि इससे चीज़ें सुधरी भी हैं. पर हमेशा ऐसा नहीं था.
13 खिलाड़ियों से होता था मुकाबला
2008 का वो सिडनी टेस्ट कौन ही भूल सकता है, जो घटिया अंपायरिंग की मिसाल ही बन गई थी. भला हो तकनीक का, जिसके चलते हम सबने अपनी आंखों से अंपायरिंग का निम्नतम स्तर देखा. हालांकि इंडियन क्रिकेट टीम काफी पहले से खराब अंपायरिंग की भुक्तभोगी रही है. 70 और 80 के दशक की कई कहानियां हैं, जहां खेल के नतीजों पर बल्ले और गेंद से ज्यादा असर अंपायर के फैसलों ने डाला. मशहूर कॉमेंटेटर विनीत गर्ग ने आजतक रेडियो के पॉडकास्ट 'बल्लाबोल' में ऐसी ही कुछ दिलचस्प यादें साझा कीं. उन्होंने दिग्गज क्रिकेटर और पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर के हवाले से बताया कि वो ज़माना ऐसा था जब भारत को "11 नहीं, 13 खिलाड़ियों" से भिड़ना पड़ता था.
नए अंपायर होते थे टेस्ट

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