भारत की नकल करके बुरा फंसा पाकिस्तान! उल्टी पड़ गई चाल
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पाकिस्तान और रूस के बीच लंबे समय बाद तेल समझौता हुआ था और जून में पाकिस्तान को रूसी तेल का पहला कार्गो मिला. पाकिस्तान का लक्ष्य है कि प्रतिदिन के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा दो तिहाई हो जाए जो कि संभव नहीं लगता. इसके पीछे विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के साथ-साथ कई तकनीकी दिक्कतें हैं.
रूस-यूकेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी तेल पर लगे प्रतिबंधों का लाभ उठाकर भारत ने खूब मुनाफा कमाया है. पाकिस्तान भी अपने खत्म होते विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए भारत की राह चला था लेकिन उसके हाथ निराशा लगी है. पाकिस्तान चाहता था कि उसके कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा दो तिहाई हो जाए. अधिकारियों और विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी मुद्रा की कमी, रूसी तेल रिफाइन करने की अक्षमता और कम क्षमता वाले बंदरगाहों के कारण पाकिस्तान अपने इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगा.
डॉलर की कमी से जूझ रहा पाकिस्तान रूसी तेल का नया एशियाई ग्राहक है. पाकिस्तान में रूसी तेल का पहला कार्गो जून के महीने में आया था और दूसरे कार्गो के लिए फिलहाल दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है.
पाकिस्तान ने रूस से प्रतिदिन एक लाख बैरल तेल खरीदने का लक्ष्य रखा है. साल 2022 में पाकिस्तान ने प्रतिदिन कुल 1 लाख 54 हजार बैरल तेल खरीदा था. पाकिस्तान रूस से तेल आयात इस उम्मीद में बढ़ाना चाहता है कि उसका आयात बिल कम होगा, विदेशी मुद्रा संकट की समस्या हल होगी और रिकॉर्ड महंगाई पर लगाम लगेगी.
हालांकि, पाकिस्तान को रियायती रूसी तेल से ज्यादा फायदा नहीं हो पा रहा क्योंकि रूस से तेल लाने का शिपिंग चार्ज काफी ज्यादा है और रूसी कच्चे तेल यूराल की गुणवत्ता भी ज्यादा अच्छी नहीं है.
पाकिस्तान स्थित FRIM Ventures के मुख्य निवेश अधिकारी शाहबाज अशरफ ने कहा, 'रूसी कच्चे तेल को रिफाइन कर पाकिस्तान पर्याप्त मात्रा में गैसोलीन और डीजल का उत्पादन नहीं कर पाएगा. इस वजह से इन उत्पादों का आयात बढ़ाना होगा. इनके आयात के लिए पाकिस्तान को डॉलर खर्च करने होंगे जिससे इसकी संकट में फंसी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा.'
चीनी मुद्रा में भुगतान भी मुश्किल
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