
बांग्लादेश में 23% से घटकर सिर्फ 8% बचे हिन्दू… फिर भी दीपू हत्याकांड पर 'वैचारिक मिलावट' क्यों?
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अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) में प्रकाशित एक रिपोर्ट को लेकर भारत में तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है. आरोप है कि इस रिपोर्ट में दीपू चंद्र दास की मॉब लिंचिंग को प्रत्यक्ष रूप से पेश ना करके उसे दक्षिण एशिया में बढ़ती धार्मिक असहनशीलता के बड़े मुद्दे से जोड़ा गया.
बांग्लादेश में 19 दिसंबर को हुए 27 वर्षीय हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की नृशंस मॉब लिंचिंग ने न केवल दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि इस घटना की अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रस्तुति को लेकर भी नई बहस छेड़ दी है. अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) में प्रकाशित एक रिपोर्ट को लेकर भारत में तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है.
आरोप है कि इस रिपोर्ट में दीपू चंद्र दास की मॉब लिंचिंग को प्रत्यक्ष रूप से पेश ना करके उसे दक्षिण एशिया में बढ़ती धार्मिक असहनशीलता के बड़े मुद्दे से जोड़ा गया. इसके पीछे एक मंशा ये बताने की भी थी कि जो बांग्लादेश में दीपू चंद्र दास के साथ हुआ है, वो दक्षिण एशिया के दूसरे देशों में लगातार होता रहता है.
अंग्रेजी में इसके लिए Normalize शब्द का इस्तेमाल होता है, जिसमें किसी घटना की गंभीरता को कम दिखाने के लिए उसे सामान्य रूप में पेश किया जाता है. इस घटना में भी अमेरिकी अखबार ने ने यही किया. उसने दीप चंद्र दास की मॉब लिंचिंग में पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के उदाहरणों का जिक्र किया और ये लिखा कि पाकिस्तान में भी धर्म से जुड़े कई मामलों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं तेज से बढ़ी हैं. साथ ही अफगानिस्तान में भी अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिख समुदाय के लोगों ने सुरक्षा कारणों से पलायन किया है.
केरल का उदाहरण और अधूरी जानकारी
इसी में भारत को लेकर भी ये लिखा है कि भारत में भी हिन्दू गोरक्षकों और स्वयंभू पहरेदारों ने मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया है. इसके अलावा इसमें केरल की उस घटना का भी ज़िक्र है, जिसमें पिछले हफ्ते कुछ लोगों ने एक प्रवासी मजदूर को बांग्लादेशी समझकर उसकी हत्या कर दी थी. हालांकि इसमें ये कहीं नहीं बताया गया है कि ये घटना चोरी के शक में हुई थी और इस घटना का धर्म से कोई लेना-देना नहीं था. इसे ही वैचारिक मिलावट कहते हैं.
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