
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के जाल में बुरी तरह फंसा बांग्लादेश
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दिसंबर में छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने एक बार फिर बांग्लादेश को संकट के मुहाने पर खड़ा कर दिया है. जाहिर है कि यह असंतोष यूं ही नहीं है. कुछ ताकतें ऐसी हैं जो नहीं चाहती हैं कि भारत और बांग्लादेश के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित हो सके. बांग्लादेश के कार्यकारी राष्ट्रपति मोहम्मद युनूस को भी इसमें ही फायद दिखता है.
2024 में छात्र विरोध प्रदर्शनों से शुरू हुआ बांग्लादेश का राजनीतिक संकट 2025 का अंत आते आते अपने चरम पर पहुंच रहा है. शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनी, लेकिन हिंसा, चुनाव की अनिश्चितता और हिंदुओं पर हमले लगातार देश को संकट में डाल रहे हैं. आरोप लग रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने इस आग को भड़काने में घी की भूमिका निभाई है. यह आरोप मुख्य रूप से भारतीय इंटेलिजेंस, मीडिया और राजनीतिक हलकों से आते हैं. दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञों का भी यही मानना है. इस बात के ताजा सबूत इस बात से भी मिलते हैं कि पाकिस्तान की प्रमुख पार्टी मुस्लिम लीग नवाज ने यह बयान जारी किया है कि भारत यदि बांग्लादेश के खिलाफ कोई कार्रवाई करता है तो पाकिस्तान ढाका के समर्थन में मैदान में उतर जाएगा. दरअसल, पाकिस्तान के भीतर 1971 के जख्म अब भी भरे हैं, जब बांग्लादेश से 'पूर्वी पाकिस्तान' का लेबल उखाड़ फेंका गया था. अब पाकिस्तान उसी जख्म का हिसाब बराबर करने के लिए बांग्लादेश की जमीन का इस्तेमाल कर रहा है.
ISI की कथित भूमिका, आरोप और प्रमुख उदाहरण
भारतीय इंटेलिजेंस और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ISI ने संकट को योजनाबद्ध तरीके से भड़काया. इसका मुख्य उद्दैश्य भारत को पूर्वी मोर्चे पर कमजोर करना है क्योंकि बांग्लादेश भारत की सीमा पर है. ISI इसके लिए ऐसी रणनीति पर काम कर रहा है ताकि पाकिस्तान सीधे जिम्मेदार न लगे. अगस्त 2024 में कई मीडिया रिपोर्ट में भारतीय इंटेलिजेंस ने बांग्लादेशी छात्र नेताओं, पाकिस्तानी ISI अधिकारियों और US सुरक्षा अधिकारियों के बीच गुप्त बैठकें उजागर कीं थीं. ये बैठकें पाकिस्तान और कतर में हुईं, जहां विरोध प्रदर्शनों की प्लानिंग की गई.
उदाहरण के लिए, छात्र नेता नाहिद इस्लाम (जो अब अंतरिम सरकार में मंत्री हैं) पर ISI से फंडिंग लेने के आरोप लगे. यह डिजिटल डिसइनफॉर्मेशन का हिस्सा था, जहां सोशल मीडिया पर भारत विरोधी नैरेटिव फैलाए गए.
जमात-ए-इस्लामी और मदरसा नेटवर्क का इस्तेमाल
ISI ने जमात-ए-इस्लामी को फंडिंग और समर्थन दिया, जो संकट में सक्रिय हुआ. Times of India की रिपोर्ट में दावा है कि ISI, चीन और जमात ने मिलकर अशांति फैलाई. 2024 के विरोध में जमात कार्यकर्ताओं ने हिंसा भड़काई, जैसे ढाका में पुलिस स्टेशनों पर हमले हुए. 2025 में चुनाव से पहले ISI ने मदरसों में निर्देश दिए कि वे विरोध का समर्थन करें लेकिन नेतृत्व न लें.

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