
जापान की टॉर्चर लैब, जहां सैनिकों के भीतर डाले जाते थे जानलेवा वायरस, अजन्मे बच्चे भी नहीं बख्शे गए
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लैब में ये देखने की कोशिश हो रही थी कि इंसान कितना टॉर्चर झेल सकता है. इसके तहत बेहोश किए बगैर ही युद्धबंदियों को शरीर को आरी से काटा जाता. सैनिक चीखते हुए बेहोश हो जाते. ज्यादातर वहीं दम तोड़ देते, बाकियों की गैंग्रीन से मौत हो जाती. बचे हुए के शरीर में यौन रोगों के बैक्टीरिया डाल दिए जाते थे.
रूस-यूक्रेन में जंग छिड़े लगभग सालभर होने वाला है. इस बीच कई बार खबरें आईं कि रूसी सैनिक यूक्रेनी जनता, खासकर महिलाओं-बच्चों से बदसलूकी कर रहे हैं. रेप के बाद औरतों की हत्या जैसी बर्बर बातें भी सुनाई दीं. इससे सालभर पहले आर्मेनिया-अजरबैजान की लड़ाई में भी मासूम लोगों पर हिंसा की खबरें आई थीं. जांच कमेटी भी बैठी, लेकिन फिर कोई अपडेट नहीं आया. दो मुल्कों की आपसी लड़ाई में आम लोगों पर अन्याय मॉर्डन पॉलिटिक्स नहीं, लंबे समय से इसकी झलकियां मिलती रहीं.
एक्शन T4, जहां दिव्यांगों को मारा जाता नाजी जर्मनी के दौर में सितंबर 1939 से लेकर दूसरे वर्ल्ड वॉर के खत्म होते तक एक खास प्रयोग चला, जिसे एक्शन T4 कहा गया. इसके लिए साइकेट्रिक अस्पताल बनाए गए, जहां शारीरिक या मानसिक तौर पर कमजोर लोगों को रखा गया. इनमें बच्चे भी थे और बूढ़े भी. हर दो-चार दिन के बाद इनमें से कुछ सैकड़ों लोगों को लेकर डॉक्टर कहीं जाते और फिर अकेले लौट आते. पता लगा कि उन्हें गैस चैंबर या आग में जिंदा भून दिया जाता था.
हिटलर को किसी भी तरह की दिव्यांगता से खासी चिढ़ थी वो ऐसे लोगों को 'यूजलेस ईटर' (बेकार में खाने वाला) कहता, जो देश के किसी काम नहीं आ सकते थे. इसे इनवॉलंटरी यूथेनेशिया कहा गया. माना जाता है कि इस दौरान लगभग 3 लाख दिव्यांगों को जर्मनी, ऑस्ट्रिया और पोलैंड में मार दिया गया.
युद्ध में किया सफाया युद्ध समाप्ति के बाद हिटलर के डॉक्टर कार्ल ब्रेंट्ड ने बताया कि उसके दिमाग में ऐसे लोगों को मारने की बात काफी पहले से थी. जंग के दौरान उसे मौका मिल गया. वो सोचता था कि दिव्यांगों के इलाज पर खर्च होते पैसों को युद्ध या किसी दूसरे काम में लगाया जाए. एलजीबीटी समुदाय भी सॉफ्ट टारगेट रहा.
बच्चों को स्पेशल ट्रीटमेंट का कहकर ले जाया गया ऑटिज्म या किसी भी किस्म की गंभीर बीमारी से जूझ रहे बच्चों के साथ भी यही किया गया. खुद इंटीरियर मिनिस्ट्री ने पेरेंट्स को बताया कि उनके बच्चे इलाज के लिए स्पेशल सेक्शन में भेजे जा रहे हैं. कुछ दिनों बाद उन्हें जहरीली दवा देकर मार दिया जाता और पेरेंट्स को न्यूमोनिया से मौत की खबर भेज दी जाती.
अनुशासित देश जापान का इतिहास भी कम बर्बर नहीं जापान के यूनिट 731 प्रयोग को दुनिया के सबसे क्रूर वॉर क्राइम में गिना जाता है. जापानी सेना ने सालों तक चीनी सेना और यहां तक कि आम चीनियों पर भी खतरनाक एक्सपेरिमेंट किए. यूनिट 731 दरअसल एक लैब हुआ करती, जहां कई तरह के खौफनाक बायोलॉजिकल प्रयोग युद्ध बंदियों पर हुए.

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