कोटा में पढ़े उस डॉक्टर की कहानी जिसके क्लास में सबसे कम नंबर थे...
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डॉ. बलराम हरसाना जयपुर के जाने-माने सर्जन है. उन्होंने एमबीबीएस-डीएनबी (जनरल सर्जरी) की पढ़ाई की है. डॉ बलराम वो डॉक्टर हैं जिन्होंने कोटा में रहकर डॉक्टरी की तैयारी की. उन्होंने aajtak.in से बातचीत में उस दौर की कहानी साझा की. यहां हम उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी दे रहे हैं.
मैं डॉक्टर बलराम हरसाना करौली जिले की टोडाभीम तहसील का रहने वाला हूं. मैंने उसे दौर में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोटा का रुख किया था. तब हमारे क्षेत्र में बहुत कम संख्या में लोग मेडिकल की पढ़ाई किया करते थे. हमारे क्षेत्र के मुझसे उम्र में काफी बड़े और एक सीनियर डॉक्टर हुआ करते थे जो वहां से पढ़े थे. लेकिन, मेरे दौर में सिर्फ मैं अकेला छात्र था जिसने कोटा में रहकर मेडिकल एग्जाम की तैयारी की.
कोचिंग का पहला दिन और फिर आगे का सफर मेरे पिताजी आर्मी में थे तो मेरी स्कूलिंग पंजाब के पठानकोट आर्मी स्कूल से हुई. उसके बाद मैं कोटा पहुंच गया था. मेरे स्कूल में मेरी पांचवीं रैंक थी. मैं फुल कॉन्फीडेंस से वहां पहुंचा था. यह कोटा में कोचिंग का मेरा पहला दिन. उस दिन मेरे साथ एक इंसिडेंट हुआ जिसने हालांकि मुझे टूटने तो नहीं दिया लेकिन मेरी जगह कोई और छात्र होता तो शायद वह तनाव में आ जाता.
क्लास के पहले दिन हुआ यह कि टीचर ने उन बच्चों को खड़ा होने के लिए जिनकी परसेंटेज 95% से ऊपर थी. अरे यह क्या, क्लास के 70 से 80 परसेंट बच्चे खड़े हो गए. फिर कहा कि अब वो खड़े हों जिनके 90 पर्सेंट से ऊपर है. इस बार तो क्लास के लगभग 80-90% बच्चे खड़े हो गए थे. तकरीबन ये पूरी क्लास ही थी. फिर आखिर में बोला कि अब 85 पर्सेंट वाले खड़े तो सिर्फ मैं और क्लास में एक और स्टूडेंट था. हम दोनों खड़े हो गए. उस समय सभी बैठे थे और हम दो खड़े थे. यह बहुत निराशाजनक लग रहा था. उस घटना के बाद मैं बैठकर कैलकुलेशन कर रहा था कि मैं इतने बच्चों में कहां स्टैंड करता हूं. मैं तो इसलिए नहीं टूटा क्योंकि मेरा सपना मेडिकल का नहीं था मैं इंजीनियर बनना चाहता था. इसलिए मैंने मेडिकल को कभी सीरियस ही नहीं लिया. अगर मेरी जगह अगर कोई और होता तो वो खुद को क्लास का आखिरी और सबसे कमजोर स्टूडेंट मानकर शायद पूरी तरह टूट जाता.
टीचर भी करते हैं बच्चों को तनाव में लाने का काम एक दिन एक टीचर ने सभी बच्चों को बुलाकर कहा कि जिन बच्चों की हजार के आसपास रैंक है. बस वही तैयारी करें बाकी सब सपना छोड़ दें और दोबारा एग्जाम देने की कोशिश करें क्योंकि आप लोगों का इस साल सिलेक्शन नहीं हो पाएगा. आप सब अब अगले साल की तैयारी करो.
यह सुनकर कई स्टूडेंट तनाव में आ गए. अक्सर इस तरीके की बातें करने से छात्र तनाव में आकर कोई गलत कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं. इसलिए अध्यापकों को इस तरह की बात छात्रों को डिमोटिवेट करने के लिए नहीं करनी चाहिए.
कई तरह के टोटके भी चलते हैं... हुआ यह कि मैं जिस मकान के अंदर रहता था, वहां पर कुछ दिनों बाद मेरी मां भी मेरे साथ रहने लग गई थीं. जो मकान मालिक आंटी थीं उन्होंने एक दिन ऐसी बात कर दी कि एक स्टूडेंट वहां से चला गया. इस इंसिडेंट को याद करते हुए मुझे लगता है कि आज भी कुछ पुराने जमाने की रूढ़िवादी सोच कहीं ना कहीं जीवित है.
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