
Buddha Purnima 2025: आखिर कैसे हुई थी गौतम बुद्ध की मृत्यु, जानें लेटी हुई प्रतिमा के पीछे का रहस्य
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Buddha Purnima 2025: आज बुद्ध पूर्णिमा है. इस त्योहार का महत्व हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में ही है. गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में अनेक उपदेश दिए और लोगों को जीवन का सही अर्थ भी समझाया. आज हम आपको बताएंगे कि गौतम बुद्ध की मृत्यु का क्या कारण था. दरअसल, गौतम बुद्ध की मृत्यु जहरीला खाना खाने से हुई थी.
Buddha Purnima 2025: आज बुद्ध पूर्णिमा है. इस त्योहार का महत्व हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में ही है. वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु के नौवे अवतार गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था. गौतम बुद्ध ने दुनिया को सत्य, अहिंसा, प्रेम, दयालुता, करुणा और परोपकार का पाठ पढ़ाया था.
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में हुआ था. उनका असली नाम सिद्धार्थ था. गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की उम्र में वैराग्य धारण किया था. गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में अनेक उपदेश दिए और लोगों को जीवन का सही अर्थ भी समझाया. आज भी कई लोग भारत समेत कई देशों में बौद्ध धर्म का पालन करते हैं.
कैसे हुई थी गौतम बुद्ध की मृत्यु?
आज हम आपको बताएंगे कि गौतम बुद्ध की मृत्यु का क्या कारण था. दरअसल, गौतम बुद्ध की मृत्यु जहरीला खाना खाने से हुई थी. एक बार वे किसी अपने किसी मेजबान के यहां भोजन करने गए थे. जब वे भोजन करने बैठे तो उन्हें इस बात का आभास हो गया था कि खाने में जहर है इसलिए उन्होंने अपने किसी भी शिष्य को वह खाना नहीं खाने दिया था और खुद वो खाना खाया. जब मेजबान ने गौतम बुद्ध के शिष्यों को खाना परोसा तो उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया कि आपका खाना तो बहुत स्वादिष्ट है लेकिन मेरे शिष्य इसे नहीं पचा पाएंगे. इसलिए, मेरे शिष्यों को यह खाना ना दें. इस तरह गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को जहरीला खाना खाने से बचा लिया था.
भोजन करने के बाद गौतम बुद्ध की तबियत बिगड़ने लगी. वो वहीं जमीन पर लेट गए और उसी मुद्रा में अपना अंतिम उपदेश देने लगे. गौतम बुद्ध का अंतिम उपदेश सुनने के लिए उनके सभी शिष्य वहां आ गए. गौतम बुद्ध की इस मुद्रा को ही महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है. उनके मरने पर 6 दिनों तक लोग दर्शनों के लिए आते रहे. सातवें दिन गौतम बुद्ध के शव को जलाया गया. फिर उनके अवशेषों को लेकर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों और वैशाली के विच्छवियों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था. जब युद्ध शांत नहीं हुआ तो द्रोण नामक ब्राह्मण ने इन सभी राज्यों के बीच समझौता कराया कि अवशेष आठ भागों में बांटें जाएंगे. ऐसा ही हुआ, गौतम बुद्ध के अवशेष को आठ स्तूप और आठ राज्यों में बांट कर रख दिया गया. बताया जाता है कि बाद में अशोक ने उन अवशेषों को निकलवाकर 84000 स्तूपों में बांट दिया था.

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