
5 राज्य, 190 सीटें, विपक्षी एकजुटता की काट... पसमांदा मुस्लिमों पर PM मोदी के दांव के पीछे की असली कहानी!
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पीएम नरेंद्र मोदी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी का चुनावी शंखनाद करते हुए पसमांदा मुस्लिमों की बात की. कार्यकर्ताओं को उनके बीच पहुंचने और बीजेपी को लेकर भ्रम दूर करने का संदेश दिया. पीएम मोदी के पसमांदा मुस्लिमों पर दांव के पीछे की असली कहानी क्या है?
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का फोकस 2024 लोकसभा चुनाव से पहले पसमांदा मुस्लिम पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से बीजेपी के चुनाव अभियान का आगाज करते हुए पसमांदा समाज की बदहाली की चर्चा की और उसे वोटबैंक की राजनीति का शिकार बताया. पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुस्लिम के बीच जाने, तीन तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भ्रम दूर करने का संदेश भी दिया.
बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद संबोधन समेत कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पसमांदा मुसलमानों का जिक्र कर चुके हैं. लेकिन अगले साल देश में लोकसभा चुनाव हैं और भोपाल के जिस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने पसमांदा मुसलमानों का जिक्र किया, वह कार्यक्रम बीजेपी के चुनावी अभियान का शंखनाद भी था. ऐसे में पीएम मोदी के पसमांदा मुस्लिमों के बीच गतिविधियां बढ़ाने के संदेश, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर रुख साफ करने और तीन तलाक को लेकर बयान के सियासी और चुनावी मायने निकाले जाने लगे हैं. क्या ये विपक्ष के पक्ष में एकमुश्त मुस्लिम वोट जाने से रोकने की कोशिश में चला गया दांव है?
5 राज्यों की 190 सीटों पर फोकस
यूपी और बिहार के साथ ही झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम में मुस्लिम मतदाता अच्छी तादाद में हैं. लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 190 सीटें इन पांच राज्यों से ही आती हैं. यूपी की कुल 80 में से 65 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब 30 फीसदी है. इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. बिहार की 40 में से करीब 15 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 15 से 70 फीसदी के बीच है.
पश्चिम बंगाल में 42, झारखंड और असम में लोकसभा की 14-14 सीटें हैं. पश्चिम बंगाल में कुल वोट में करीब 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. असम और झारखंड की कई सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पसमंदा समुदाय की बात करें तो ये समाज कुल मुस्लिम आबादी में 85 फीसदी भागीदारी रखता है.
पसमांदा वोट पर क्यों है बीजेपी की नजर?

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