
10 सीट, 8 फीसदी जाट वोट... धर्म के बाद अब इन 5 वजहों से जाति की पिच पर आए अरविंद केजरीवाल?
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आम आदमी पार्टी ने पहले पुजारियों को 18 हजार रुपये महीना देने का वादा किया. फिर बीजेपी के मंदिर प्रकोष्ठ के मुकाबले सनातन सेवा समिति बनाने का दांव चला. धर्म की पिच से जाति की पिच पर आकर अब अरविंद केजरीवाल ने सियासी बैटिंग शुरू करते हुए दिल्ली में जाटों के ओबीसी वर्ग में शामिल ना होने और पिछड़े वर्ग का आरक्षण ना मिलने का मुद्दा उठाया.
दिल्ली में धर्म के बाद जाति की सियासत तेज हो गई है. अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. दरअसल, केजरीवाल ने चुनाव से पहले जाट आरक्षण का दांव चल दिया है. दिल्ली में आठ प्रतिशत वोट की ताकत के साथ दस सीट पर नतीजे में फेरबदल की ताकत रखने वाले जाट वोट को लेकर केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी. चुनाव से ऐन पहले मांग की है कि जाट समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल किया जाए.
आम आदमी पार्टी ने पहले पुजारियों को 18 हजार रुपये महीना देने का वादा किया. फिर बीजेपी के मंदिर प्रकोष्ठ के मुकाबले सनातन सेवा समिति बनाने का दांव चला. धर्म की पिच से जाति की पिच पर आकर अब अरविंद केजरीवाल ने सियासी बैटिंग शुरू करते हुए दिल्ली में जाटों के ओबीसी वर्ग में शामिल ना होने और पिछड़े वर्ग का आरक्षण ना मिलने का मुद्दा उठाया. उन्होंने आरोप का तीर बीजेपी की तरफ मोड़ा. इसके पीछे का मकसद है दिल्ली के 8 प्रतिशत जाट वोटों को साधना, जो 10 सीट पर निर्णायक हैं.
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जाट वोट पर जंग छिड़ने की ये हैं 5 वजह?
अचानक जाट वोट पर जंग छिड़ने की वजह ऐसे ही नहीं है. इसके पीछे पहली वजह है कि 2015 के मुकाबले 2020 में हिंदू वोट की जातियों में वैश्य के अलावा इकलौता जाट वोट ही था, जो आम आदमी पार्टी का बढ़ा था, बाकी सब कुछ ना कुछ घटे थे. इस दूसरी वजह ये है कि 2015 के मुकाबले 2020 में कांग्रेस का पूरा जाट वोट आम आदमी पार्टी अपनी तरफ खींच चुकी है. जिसे वो अब और नहीं घटने या बंटने देना चाहती है. तीसरी वजह है कि दिल्ली के 364 में से 225 गांव जाट बहुल हैं. चौथी वजह है कि दिल्ली में केजरीवाल के ही जाट नेता कैलाश गहलोत अब बीजेपी से चुनावी मैदान में हैं. पांचवीं वजह है कि नई दिल्ली सीट पर प्रवेश वर्मा केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार हैं, जो जाट समाज से ही आते हैं.
जाटों को बीजेपी से 10 साल से धोखा मिल रहा: केजरीवाल

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