सेमीकंडक्टर का सूरमा बनने की चाहत, क्या भारत के पास है ये ताक़त?
BBC
भारत डिजिटलाइज़ेशन के रास्ते पर तेज़ी से क़दम बढ़ा रहा है. मगर इसके लिए उसे ज़रूरत है सेमीकंडक्टर की. मगर ये बनते हैं विदेशों में. पर क्या ये चिप भारत में भी बनाए जा सकेंगे?
मोबाइल से पेमेंट करते, गाड़ी चलाते या फिर फ्लाइट से चंद घंटों में हज़ारों किलोमीटर की दूरियां नापते हुए हमें शायद ही इस आधे इंच की चीज़ का ख़याल आता है. लेकिन तेज़ी से डिजिटल होती हमारी दुनिया में हर तरफ इसका ही दखल है. लैपटॉप से लेकर फिटनेस बैंड तक और महीन कंप्यूटिंग मशीन से लेकर मिसाइल तक में आज एक ही चीज धड़क रही है- दुनिया इसे सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप कहती है.
सिलिकॉन से बनी इस बेहद छोटी चिप की अहमियत का अहसास तब होता है, जब दुनिया भर में गाड़ियों का प्रोडक्शन थम जाता है, मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट महंगे हो जाते हैं, डेटा सेंटर डगमगाने लगते हैं, घरेलू अप्लायंस के दाम आसमान छूने लगते हैं, नए एटीएम लगने बंद हो जाते हैं और अस्पतालों में ज़िंदगी बचाने वाली टेस्टिंग मशीनों का आयात रुक जाता है.
कोविड के उफान के दिनों में जब इन सेमीकंडक्टर्स या माइक्रोचिप्स की सप्लाई धीमी हो गई थी तो दुनिया भर के लगभग 169 उद्योगों में हड़कंप मच गया था. दिग्गज कंपनियों के अरबों डॉलरों का नुकसान उठाना पड़ा था. चीन, अमेरिका और ताइवान जैसे माइक्रोचिप्स के सबसे बड़े निर्यातक देशों की कंपनियों को भी प्रोडक्शन रोकना पड़ा था.
इसी महीने (मई 2022) कार बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुज़ुकी ने बताया कि सेमीकंडक्टर की कमी से अप्रैल महीने में उसे डेढ़ लाख कारें कम बनानी पड़ीं.