समाज में क्यों नहीं मिलता किन्नरों को उनका हक? पढ़ें- रिजवाना से रामकली बनने की दुखभरी कहानी
Zee News
जी सलाम अपने खास शो कोई सताए हमें बताएं में समाज के ऐसे लोगों की आवाज उठाता है, जिनकी कोई नहीं सुन रहा होता. अगर आप भी अपनी कोई शिकायत देना चाहते हैं तो जी सलाम की वेबसाइट पर जाकर Viratual FIR में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
नई दिल्ली: जज़्बात, खुशी और ग़म, कुछ ही पलों में इन सबका एहसास हो जाता है. जब रिज़वान से रामकली बनने की कहानी वो खुद सुनाती है. समाजी धुतकार, अपनों की फटकार और ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद में अपनी पहचान के साथ आगे बढ़ना. किसी भी किन्नर या ट्रांसजेंडर की ज़िंदगी इन्हीं मरहलों से गुजरती है. रिज़वान ने अपनी ज़िंदगी में इन सबका सामना किया और आज वो आगे आकर अपने जैसे लोगों यानी किन्नरों के हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं.
रामकली और उनकी कम्युनिटी के लोगों को. ट्रांसजेंडर या हमारे समाज मे सबसे ज्यादा बोले जाने वाला लफ्ज़ हिजड़ा इन्हीं सब अल्फाज़ से पुकारा जाता है. जिस दौर में हम मर्द और औरतों के हकूक की पैरवी करते नज़र आते है. उसी जदीद जमाने मे ये तबका आज भी ना सिर्फ समाजी तानों को सुनता है बल्कि सड़कों चौराहों और खुशी के मौके पर घर-घर जाकर भीख मांगता है बचपन से लेकर बुढापे तक किन्नर समाज के लोगों को जिस नज़रिए से हमारे समाज मे देखा जाता है उस पर बात होना जरूरी है. रामकली कहती है कि हम अपनी मर्जी से किन्नर या ट्रांसजेंडर नहीं बने बल्कि क़ुदरत ने बनाया है. लोगों को सिर्फ मर्द और औरत के बारे जानकारी होती है क्योंकि बच्चों को बचपन से यही सिखाया और पढ़ाया जाता है हमारी कम्यूनिटी के बारे जानकारी तक नहीं होती. इसलिए हमें बचपन से बुढ़ापे तक सिर्फ इम्तियाज़ी सुलूक का सामना करना पड़ता है. पढ़ाई से लेकर नौकरी तक हमारे पास कोई हक़ नज़र नहीं आता.