वो बीमारी, जो सिर्फ अमेरिकी राजदूतों पर हमला करती थी, आज भी रहस्यों में है हवाना सिंड्रोम!
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साल 2016 की रात क्यूबा की राजधानी हवाना में एक अमेरिकी राजदूत कानों में तेज आवाज और सिरदर्द के साथ जागा. जल्द ही वहां मौजूद सारे अमेरिकी राजदूतों का यही हाल था. सबके सब कनपटी दबाए चीख रहे थे. जांच में कुछ भी निकलकर नहीं आया, सिवाय इसके कि राजनयिक अब काम करने के लायक नहीं. रहस्यमयी बीमारी को नाम मिला हवाना सिंड्रोम.
लगभग 7 साल बाद अमेरिकी सरकार अपने लोगों को क्यूबा का वीजा देने जा रही है. साल 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस देश में अपने राजनयिकों या उनकी फैमिली को भेजना एकदम रोक दिया था. उन्हें डर था कि क्यूबाई द्वीप पर जाने पर सब के सब हवाना सिंड्रोम की गिरफ्त में आ जाएंगे. ये वो बीमारी है, जिसकी वजह या इलाज तक अमेरिका जैसा देश अब तक नहीं खोज सका. यहां तक कि वो ये भी नहीं जानता है कि हवाना सिंड्रोम सच भी था, या महज वहम था. लेकिन कुछ था जो अचानक सबको बीमार बना रहा था
दूसरे देश कर रहे थे हमला! अनुमान लगाया गया कि क्यूबा शायद अमेरिका के दुश्मन देशों जैसे रूस और चीन के साथ मिलकर जासूसी कर रहा हो. इसके लिए वो उनके लोगों पर सुपरसोनिक अटैक करता हो, जिससे दिमाग पर असर पड़ने लगा. कुछ लोगों ने इसे एनर्जी अटैक से जोड़ा तो किसी ने माइक्रोवेव अटैक से. इनके बारे में जानने से पहले एक बार जानते हैं कि क्या थे बीमारी के लक्षण, जिनके कारण अमेरिकी राजदूत बेहाल हो रहे थे.
इस तरह के थे लक्षण इनमें कानों में एकदम से तेज आवाज आने लगती थी, जैसे किसी सायरन का बीप की आवाज. कुछ लोग ऐसी अलग आवाज सुनते, तो कभी सुनी नहीं गई थी. जाहिर है कि वे इसे डिसक्राइब भी नहीं कर सके. आवाज पहला लक्षण था, जिसके बाद सिरदर्द होने लगता. उल्टियां होती. एक-दो दिन बाद ही राजनयिक को सुनाई या दिखाई देना कम हो जाता. यानी ये कोई ऐसी चीज थी जो मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र को टारगेट कर रही थी. टेस्ट में हालांकि कोई न्यूरोलॉजिकल बदलाव नहीं दिखे.
बीमारी फैलने लगी कुछ ही महीनों के भीतर हवाना ही नहीं, चीन, रूस, ऑस्ट्रिया, सर्बिया और कई दूसरे देशों में भी इस अजीबोगरीब बीमारी के लक्षण दिखने लगे. सबसे अजीब बात ये थी कि बीमारी सिर्फ अमेरिकी राजदूत और अमेरिकी जासूसों को जकड़ रही थी. अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने अपनी तरह से इसकी वजह खोजने की कोशिश की. लेकिन कुछ खास पता नहीं लगा.
पहले भी हो चुके थे हमले इसके बाद CIA समेत कई अमेरिकी एजेंसियों ने कंस्पिरेसी थ्योरीज दीं, जो इसके लिए जिम्मेदार हो सकते थे. सबसे ज्यादा बात माइक्रोवेव अटैक पर हुई. रूस पहले भी अमेरिका पर ये अटैक कर चुका था. कोल्ड वॉर के दौरान साल 1953 से 1976 के बीच मॉस्को स्थित अमेरिकी एंबेसी में खलबली मच गई. एंबेसी के 10वें माले पर एक अपार्टमेंट की बिल्डिंग से माइक्रोवेव अटैक होने लगा. ऐसा कई बार हुआ. अमेरिकी एंबेसी ने तब अपने ट्रांसमिशन को सुरक्षित रखने के लिए नए सिरे से सारी बिल्डिंग को प्रोटेक्ट किया.
क्या है माइक्रोवेव वेपन अटैक ये एक तरह का एनर्जी वेपन है, जो किसी तरह की विकिरण, जैसे लेजर, सोनिक या माइक्रोवेव के फॉर्म में होता है. इसकी तेज विकिरण से वैसे तो तकनीक से छेड़छाड़ करती है, जैसे किसी खास सिस्टम को करप्ट कर देना ताकि कमजोर बनाना ताकि सेंधमारी हो सके. इसे एक तरह का बग भी समझ सकते हैं. हालांकि इंसानों पर ये बीम अलग असर करती है. ये सीधे मस्तिष्क के न्यूरॉन्स पर असर डालती है, जिससे सुनने-समझने की ताकत कम होने लगती है. सिर में दर्द रहने लगता है. लंबे समय में ये असर बेहद खतरनाक हो सकता है.
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