‘विदेशी वकील और क़़ानूनी फर्म सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों पर क्लाइंट को सलाह दे सकते हैं’
The Wire
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बीते 10 मार्च को विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों के लिए भारत में प्रवेश के द्वार खोल दिए थे. नियमों को उपजी ग़लतफ़हमियों के बाद काउंसिल ने कहा है कि विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों को केवल ग़ैर-मुक़दमेबाजी वाले क्षेत्रों में कार्य करने की अनुमति दी जाएगी.
नई दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने रविवार (19 मार्च) को कहा कि भारत में विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों के प्रवेश को अनुमति देने वाले हालिया संशोधन को लेकर कुछ ‘गलतफहमियां’ हैं और उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सेवाएं केवल अंतरराष्ट्रीय कानूनों तक सीमित रहेंगी, जो केवल विदेशी ग्राहकों को ही दी जा सकती हैं. ‘अनुभव और तथ्य बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मामले में बहुराष्ट्रीय कंपनियां और विदेशी वाणिज्यिक संस्थाएं भारत को मध्यस्थता की कार्यवाही के स्थान के रूप में पसंद नहीं करती हैं, क्योंकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता की कार्यवाही में सलाह देने के लिए अपने ही देशों से वकीलों और कानूनी फर्मों को लाने की अनुमति नहीं है, इसलिए वे इस काम के लिए लंदन, सिंगापुर, पेरिस आदि को पसंद करते है. बार काउंसिल के नियम अब भारत को इस तरह की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही के लिए एक स्थान के रूप में तरजीह देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे. इस प्रकार, भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बनने में मदद मिलेगी.’
भारत में कानून की प्रैक्टिस और शिक्षा को नियंत्रित करने वाले वैधानिक निकाय बार काउंसिल ने बीते 10 मार्च को विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों के लिए भारत में प्रवेश के द्वार खोल दिए थे.
हालांकि, नियम विदेशी वकीलों और फर्मों को अदालतों में उपस्थित होने की अनुमति नहीं देते हैं, उन्हें पारस्परिक आधार पर लेन-देन और कॉरपोरेट कार्य करने की अनुमति होगी.
हालांकि, वकीलों के एक संघ ने बार काउंसिल पर ‘विकृत प्राथमिकताएं’ रखने का आरोप लगाते हुए विरोध किया था.