![मुज़फ़्फ़रनगर में मुसलमान उम्मीदवारों से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन का मोहभंग क्यों?](https://ichef.bbci.co.uk/news/1024/branded_hindi/98FC/production/_122746193_3668786c-ef41-4b15-b873-edc29bab0555.jpg)
मुज़फ़्फ़रनगर में मुसलमान उम्मीदवारों से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन का मोहभंग क्यों?
BBC
बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिलकर नया समीकरण बिठाया है. लेकिन मुसलमानों की अच्छी तादाद वाली सीटों पर उन्हें उम्मीदवार बनाने से परहेज़ क्यों. पढ़िए एक विश्लेषण.
जानकारों का कहना है कि मुज़फ़्फ़रनगर में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने टिकट बंटवारे में ध्रुवीकरण का ख़ास ध्यान रखा है. मुज़फ़्फ़रनगर में साल 2013 में दंगे हुए थे, जिसके बाद 2014 और 2019 लोकसभा में मुज़फ़्फ़रनगर सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इस ज़िले की सभी छह सीटों पर कब्ज़ा किया. इसलिए मुज़फ़्फ़रनगर में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा और रालोद ने मिलकर नया समीकरण बनाया है जिसके तहत ज़िले की 5 विधानसभा सीटों पर किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है, जबकि एक सीट पर उम्मीदवार का एलान होना अभी बाकी है.
मुज़फ़्फ़रनगर में बीजेपी की कितनी पकड़?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में इस बार कांटे की टक्कर है. बीजेपी को मात देने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार काफी सोच समझकर उम्मीदवार उतारे हैं. इसके पीछे वजह है मुज़फ़्फ़रनगर में हुए दंगों के बाद मतदाताओं का सांप्रदायिक विभाजन. मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में क़रीब 40 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है.
स्थानीय पत्रकार अर्जुन चौधरी के मुताबिक, "मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के बाद हिंदू-मुसलमान समुदाय के बीच खाई बढ़ गई, साथ ही इसके बाद के चुनावों में वोटों का ध्रुवीकरण भी चरम पर पहुंच गया. जो जाट कभी समाजवादी पार्टी और रालोद को वोट दिया करते थे उन्होंने दंगे के बाद एकमुश्त बीजेपी को वोट दिया."