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भारत भले न माने, पर यूएन को क्राइसोटाइल एस्बेस्टस को हानिकारक रसायन की सूची में रखना चाहिए

भारत भले न माने, पर यूएन को क्राइसोटाइल एस्बेस्टस को हानिकारक रसायन की सूची में रखना चाहिए

The Wire
Wednesday, June 15, 2022 02:53:24 PM UTC

जेनेवा में हानिकारक रसायनों की आधिकारिक अंतररारष्ट्रीय सूची पर नियंत्रण रखने वाले संयुक्त राष्ट्र रॉटरडम कंवेंशन के पक्षकारों का 10वां सम्मेलन चल रहा है. इस कंवेंशन के एनेक्सचर-3 में हानिकारक रसायनों के तौर पर वर्गीकृत पदार्थों की सूची है और कंवेंशन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इनके व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है. इसमें क्राइसोटाइल एस्बेस्टस को शामिल किए जाने का विरोध करने वाले देशों में भारत भी शामिल है, जबकि इसके कैंसरकारक होने की बात किसी से छिपी नहीं है.

नई दिल्ली: हानिकारक रसायनों की आधिकारिक अंतररारष्ट्रीय सूची पर नियंत्रण रखने वाले संयुक्त राष्ट्र रॉटरडम कंवेंशन (समझौता) के पक्षकारों का 10वां सम्मेलन (कोप-10), जेनेवा में 6 से 17 जून तक हो रहा है. इस कंवेंशन के अनुलग्नक (एनेक्सचर)-3 तीन में हानिकारक रसायनों के तौर पर वर्गीकृत पदार्थों की सूची दी गई है और यह कंवेंशन अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनके व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है. ‘एस्बेस्टस से जुड़ी बीमारियों का बोझ, उन देशों में भी, जहां 1990 के दशक की शुरुआत में एस्बेस्टस के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, अब भी बढ़ रहा है. एस्बेस्टस संबंधित रोगों की लंबी सुसुप्तावस्था (यानी प्रकट होने में लगने वाले लंबे समय) के कारण अगर एस्बेस्टस के उपयोग को अभी रोका जाता है, तो एस्बेस्टस संबंधित मौतों में कमी में आनेवाले कई दशक का वक्त लग जाएगा. एस्बेस्टस का कोई सुरक्षित उपयोग नहीं है और विश्व स्वास्थ्य संगठन [और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन] ने कोई सुरक्षित सीमा नहीं तय नहीं की है.’ ‘एस्बेस्टस के साथ क्राइसोटाइल की कैंसरकारी जोखिम की किसी सीमा रेखा की पहचान नहीं की गई है. एस्बेस्टस के संपर्क में रहनेवाले व्यक्ति में सिगरेट पीने से फेफड़े के कैंसर का जोखिम और बढ़ जाता है. ‘क्राइसोटाइल का व्यापक तौर पर इस्तेमाल निर्माण सामग्रियों और गाड़ियों के पुर्जे बनाने में होता है, जहां श्रमिकों और आम लोगों को इसके संपर्क में आने से रोकना संभव नहीं है. क्राइसोटाइल के शुरुआती इस्तेमाल के बाद, इन उत्पादों का अपनी जगह पर क्षय होने लगता है और ये अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियां पेश करते हैं, खासकर प्राकृतिक तथा अन्य आपदाओं की स्थिति में. ‘‘विकासशील देशों में, क्राइसोटाइल विषाक्तता के बारे में जानकारी का प्रसार कम हो सकता है और लोगों संपर्क में आने से बचाना मुश्किल है. क्राइसोटाइल का उत्पादन और उसका उपयोग करने वाले देशों में मेसोथेलिओमा के मामले अवश्य होते हैं, लेकिन कई देशों में मेसोथेलिओमा का पता लगाने के लिए समुचित तंत्र नहीं है. इसलिए रिपोर्ट किए गए मामलों के न होने का मतलब मामलों का न होना नहीं है.’

भारत उन सात देशों के समूह में शामिल है, जिन्होंने अनुलग्नक-3 में क्राइसोटाइल एस्बेस्टस को शामिल किए जाने का विरोध किया है, जबकि इसके कैंसरकारक होने की बात से सभी वाकिफ है. … क्राइसोटाइल का अभी भी व्यापक इस्तेमाल हो रहा है और इसका लगभग 90 फीसदी एस्बेस्टस सीमेंट उत्पादन सामग्रियों में होता है, जिसके सबसे बड़े उपयोगकर्ता विकासशील देश हैं. क्राइसोटाइल के अन्य उपयोग घर्षण सामग्रियों (7%) कपड़ा तथा इसके अन्य अनुप्रयोगों में हैं.’

महत्वपूर्ण तरीके से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि ‘एस्बेस्टस से जुड़े रोगों को खत्म करने का सबसे कारगर तरीका हर तरह के एस्बेसटस के इस्तेमाल पर रोक लगाना है.’

विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह बयान इंटरनेशनल क्राइसोटाइल एसोसिएशन (आईसीए) के पिछले महीने एक गुमराह करने वाले बयान के बाद आया है, जिसमें आईसीए ने एस्बेस्टस कंपनियों के कारोबारी हितों का बचाव किया, लेकिन ऐसा करते हुए इसने क्राइसोटाइल एस्बेस्टस के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक नतीजों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया.

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