
भारत को ईयू की एक्शन की धमकी के बीच जर्मनी ने कह दी ये बड़ी बात
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यूरोपीय देशों की ओर से लगातार दबाव बनाए जाने के बाद भी भारत ने अभी तक यूक्रेन में रूसी हमले की निंदा नहीं की है. यहां तक कि रूस पर पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद रूसी तेल खरीद रहा है. यूक्रेन मुद्दे को लेकर भारत का समर्थन नहीं जुटा पाने पर जर्मनी ने बड़ी बात कही है.
रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन के पक्ष में भारत, वियतनाम और साउथ अफ्रीका जैसे देशों का समर्थन हासिल नहीं करने से यूरोपीय देशों में बहस छिड़ गई है. यूरोपीय देश जर्मनी के चांसलर ने पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए कहा है कि पश्चिमी देशों को विकासशील देशों के साथ भी समान शर्तों पर संबंध स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए, ना कि सिर्फ जरूरी प्रस्ताव पर समर्थन लेने के लिए.
रूस और यूक्रेन के बीच लगभग एक साल से खूनी जंग जारी है. भारत ने अभी तक एक बार भी रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाए गए किसी प्रस्ताव में भाग नहीं लिया है. वियतनाम और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भी रूस के खिलाफ किसी भी प्रस्ताव में वोटिंग नहीं की है. वहीं, जर्मनी समेत सभी यूरोपीय देश खुलकर यूक्रेन का समर्थन करते हैं. यूरोपीय देश भारत के इस कदम पर कई बार सवाल उठा चुके हैं.
भारत जैसे देश रूस पर पश्चिमी देशों के डबल स्टैंडर्ड से चिंतित: जर्मन चांसलर
युद्ध की शुरुआत से ही भारत बातचीत और कूटनीति के जरिए इसे समाप्त करने का पक्षधर रहा है. पश्चिमी देशों की ओर से काफी कोशिशों और दबाव के बावजूद यूक्रेन के पक्ष में भारत का समर्थन नहीं हासिल करने पर टिप्पणी करते हुए जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने कहा कि भारत, वियतनाम और साउथ अफ्रीका जैसे देश रूस की निंदा करने से कतराते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों को समान रूप से लागू नहीं किया जाता है.
सोमवार को ग्लोबल विजन समिट को संबोधित करते हुए जर्मन चांससर ओलाफ शोल्ज ने कहा, "भारत और वियतनाम जैसे देश रूस पर पश्चिमी देशों के डबल स्टैंडर्ड से चिंतित हैं. जब मैं इन देशों के नेताओं से बात करता हूं, तो उनमें से कई मुझे कहते हैं कि वे हमारे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांतों पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. बल्कि हम इससे चिंतित हैं कि ये सिद्धांत सभी देशों पर समान रूप से लागू नहीं होते हैं. ये देश चाहते हैं कि यह सिद्धांत सभी देशों के लिए समान रूप से लागू हो और पश्चिमी देशों के डबल स्टैंडर्ड का अंत हो."
उन्होंने यह भी कहा कि यह संभव है कि वह जो सोचते हैं, वह पूरी तरह से सही नहीं हो. लेकिन उनकी शिकायतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. अगर इन देशों को लगता है कि हम केवल उनके कच्चे माल में रुचि रखते हैं या हम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर उनका समर्थन चाहते हैं. तो ऐसे में अगर वो समर्थन देने से इनकार करते हैं तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए. क्योंकि सहयोग करने की उनकी क्षमता भी सीमित है.

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