
बिहार में क्यों जरूरी हो गया SIR, सालाना रिवीजन से कैसे अलग? मुख्य चुनाव आयुक्त ने समझाया
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मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि SIR में डोर-टू-डोर जाना पड़ता है. बिहार में हमारे करीब 90 हजार से ज्यादा बूथ लेवल अधिकारियों ने 7.89 करोड़ वोटर्स के घर जाकर एक-एक व्यक्ति को यह गणना फॉर्म दिया. इस तरह तीस दिन के भीतर 7.24 करोड़ फॉर्म वापस हासिल हुए हैं.
चुनाव आयोग की तरफ से रविवार को बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) और विपक्ष की ओर से लगातार उठाए जा रहे 'वोट चोरी' के आरोपों पर एक विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई है. इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक-एक कर सवालों के जवाब दिए, साथ ही वोट चोरी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में दो बार नाम आना और किसी मतदाता का दो बार वोट डालने दोनों अलग-अलग बाते हैं.
आम रिवीजन से कैसे अलग SIR?
इसके अलावा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ज्ञानेश कुमार ने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को लेकर उठे सवालों पर भी जवाब दिए. उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव से पहले ही वोटर लिस्ट में सुधार जरूरी था और इसी वजह से अभी यह रिवीजन किया जा रहा है. इसके साथ ही उन्होंने सर्वे से जुड़े आंकड़े साझा किए और इसकी अहमियत के बारे में विस्तार से बताया.
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मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि बीते 20 सालों में हर साल वोटर लिस्ट का रिवीजन होता रहा है. लेकिन बिहार में चल रहा स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन इससे अलग है. दोनों के बीच के अंतर को बताते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि सालाना रिवीजन में रेंडम तरीके से वोटर लिस्ट की जांच की है. पिछले 20 साल से देश में SIR नहीं हुआ, हालांकि उससे पहले देश में 10 से ज्यादा स्पेशल रिवीजन हो चुके हैं.
बिहार में क्यों हो रहा स्पेशल रिवीजन?

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