पाकिस्तान में आज़ाद हिंद फ़ौज के 'आख़िरी सिपाही' एहसान क़ादिर की दास्तान
BBC
ये उस शख़्स की कहानी है जिसे विभाजन से पहले हिंदुस्तान का नेता माना जा रहा था, लेकिन विभाजन के बाद धीरे–धीरे गुमनाम हो गया.
वह पाकिस्तान में नागरिक सुरक्षा (सिविल डिफ़ेंस) एजेंसी के कमांडेंट थे. अख़बार पढ़ने और ख़बरों की कटिंग जमा करने में लगे रहते थे. उन्होंने जल्द ही राजनीतिक भाषण देना शुरू कर दिया और राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान की आलोचना करनी शुरू कर दी.
जब उनके (अय्यूब ख़ान के) वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट तैयार करके राष्ट्रपति को भेजी, तो सैन्य तानाशाह ने किसी भी कार्रवाई का आदेश देने के बजाय, फ़ाइल पर बस इतना लिखा, "उन्हें बोलने दो, किसी कार्रवाई की ज़रूरत नहीं है."
नागरिक सुरक्षा एजेंसी के इस कमांडेंट का नाम एहसान क़ादिर था.
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एहसान क़ादिर कौन थे? इसके लिए हमें अतीत में जाना होगा. वह सर शेख़ अब्दुल क़ादिर के सबसे बड़े बेटे थे. वही सर शेख़ अब्दुल क़ादिर जिन्होंने 1901 में उर्दू की मशहूर साहित्यिक पत्रिका 'मख़ज़न' प्रकाशित की थी.