
नितिन नबीन की नियुक्ति का बंगाल कनेक्शन, भद्रलोक में कितने प्रभावशाली हैं कायस्थ
AajTak
बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन कायस्थ जाति से आते हैं. इनकी जनसंख्या यूपी-बिहार ही नहीं पूरे देश में कहीं भी भी इतनी नहीं है कि वो राजनीति को प्रभावित कर सकते हों. पर बंगाल में आजादी के बाद 37 साल तक कायस्थों के हाथ में सत्ता रही है. आइये देखते हैं कि नबीन की नियुक्ति का बंगाल से क्या है रिश्ता?
भारतीय जनता पार्टी ने 14 दिसंबर 2025 को एक ऐसा फैसला लिया, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. बिहार के कैबिनेट मंत्री और पांच बार के विधायक नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. मात्र 45 वर्ष की आयु में यह नियुक्ति भाजपा के इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय नेता के रूप में दर्ज हो गई है. नितिन नबीन, जो बिहार के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, अब जेपी नड्डा के बाद पार्टी के संगठनात्मक चेहरे के रूप में उभर रहे हैं. सोशल मीडिया पर यह कहा जा रहा है कि नितिन नबीन के बहाने भारतीय जनता पार्टी बंगाल विधानसभा चुनावों में बढ़त बनाना चाहती है.
लेकिन सवाल यह उठता है कि बिहार के इस नेता का पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों से क्या लेना-देना? और क्या यह नियुक्ति भाजपा की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बंगाली 'भद्रलोक' को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है? पश्चिम बंगाल 2026 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की नजरें टीएमसी की ममता बनर्जी पर टिकी हैं.
2021 के चुनावों में भाजपा ने 77 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, लेकिन अब लक्ष्य 200 से अधिक सीटें हासिल करना है. बंगाल की राजनीति में जाति, संस्कृति और बौद्धिक वर्ग (भद्रलोक) की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है. नितिन नबीन की नियुक्ति को विशेषज्ञ एक 'मास्टरस्ट्रोक' बता रहे हैं, क्योंकि उनकी कायस्थ जाति बंगाल के भद्रलोक से सीधे जुड़ती है. क्या नबीन की नियुक्ति बंगाली भद्रलोक को इम्प्रेस करने में सफल होगी?
नितिन का बंगाल से कनेक्शन उनकी जाति और छवि से जुड़ा है. कायस्थ होने के नाते वे बंगाल के उस वर्ग से जुड़ते हैं, जो सदियों से राज्य की सत्ता और संस्कृति को आकार देता आया है. बिहार और बंगाल के बीच सांस्कृतिक समानताएं हैं. दोनों में कायस्थ, ब्राह्मण और वैद्य समुदायों का प्रभाव है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अमित शाह की रणनीति का हिस्सा है, जो बंगाल को 'अगला बड़ा लक्ष्य' मानते हैं.
क्या है बंगाली भद्रलोक
भद्रलोक शब्द बंगाली संस्कृति का प्रतीक है. 19वीं शताब्दी के बंगाल रेनेसां के दौरान यह शब्द उभरा, जब ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य समुदायों ने शिक्षा, साहित्य और प्रशासन पर कब्जा किया. भद्रलोक को 'जेंट्री' या 'इंटेलिजेंटसिया' कहा जाता है. ये वे लोग हैं जो कोलकाता के कॉफी हाउस, रवींद्र सदन और दुर्गा पूजा की सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े हैं. ऐतिहासिक रूप से, बंगाल की सत्ता भद्रलोक के हाथ रही है. स्वतंत्रता के बाद सीपीआई(एम) के 34 वर्षों के शासन में ज्योति बसु (कायस्थ) 23 वर्ष मुख्यमंत्री रहे, जबकि विधान चंद्र रॉय (कायस्थ) 14 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे. कुल 37 वर्ष कायस्थ मुख्यमंत्रियों के हाथ में पश्चिम बंगाल की सत्ता रही.

1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने सेना की विजयी बढ़त को रोक दिया था. गुरु गोलवलकर सरकार के इस फैसले से बेहद दुखी हुए. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को सबक सिखाने और उसकी कमर तोड़ने का इतना सुनहरा मौका गंवाना एक बड़ी भूल थी. पीएम शास्त्रीजी ने गोलवलकर की नाराजगी पर क्या कहा. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.

दिल्ली-NCR में सर्दियों का प्रदूषण अदृश्य महामारी बन चुका है. PM2.5 जैसे बारीक कण फेफड़े, दिल, दिमाग को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे हर साल लाखों मौतें होती हैं. ये भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है. अरबों रुपये का आर्थिक नुकसान भी है. मौसम के बदलने से कभी सुधार होता है, लेकिन फिर वही हालत हो जाती है. क्या करें सरकार, समाज और हम?

'कांग्रेस का मुगल साम्राज्य जैसा होगा हश्र... इतिहास में दफन हो जाएगी पार्टी', बोले सुधांशु त्रिवेदी
दिल्ली में कांग्रेस की 'वोट चोर गद्दी छोड़ो' रैली के बाद बीजेपी ने कड़ा पलटवार किया. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने नेहरू परिवार की तुलना बाबर के वंश से की. उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का वही हश्र होगा जो छठे मुगल सम्राट औरंगजेब के अधीन साम्राज्य का हुआ था.










