तालिबान - क़तर की 'स्मार्ट पावर' रणनीति जिससे छोटा सा खाड़ी देश एक मज़बूत मध्यस्थ बना
BBC
तालिबान-अमेरिका समेत कई बड़े समझौते करवाने वाले क़तर की कूटनीतिक और राजनीतिक सूझबूझ की सूची काफी लंबी है. महज़ तीन लाख की आबादी वाला क़तर कूटनीति की दुनिया का बादशाह कैसे बना?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि क़तर ने बहुत पहले ही यह महसूस कर लिया था कि ज़िद्दी तानाशाहों, बादशाहों या राजनेताओं की तुलना में इस्लामी चरमपंथियों से बात करना ज़्यादा आसान और फ़ायदेमंद है. अगर ऐसा है भी तो यह क़तर के लिए कूटनीतिक और राजनीतिक क्षेत्र में एक बड़ी जीत है. लगभग तीन लाख आबादी वाले 4471 वर्ग मील के इस छोटे से देश की 'राजनयिक' जीत पर एक नज़र डालते हैं. सूची तो काफी लंबी है, लेकिन यहां कुछ बातों का ज़िक्र ज़रूरी है. क़तर ने साल 2008 में यमन की सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच मध्यस्थता की (यह अलग बात है कि लड़ाई अभी तक चल रही है), 2008 में लेबनान के युद्धरत गुटों के बीच वार्ता में मध्यस्थता की, जिसके बाद साल 2009 में गठबंधन की सरकार बनी. साल 2009 में ही सूडान और चाड के बीच विद्रोहियों के मुद्दे पर बातचीत में भाग लिया. जिबूती और इरिट्रिया के बीच सीमा पर सशस्त्र संघर्ष के बाद, साल 2010 में क़तर उनके बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए सहमत हो गया. जिसे अफ्रीकी गठबंधन ने भी काफी सराहा. इतना ही नहीं, बल्कि साल 2011 में सूडान की सरकार और विद्रोही समूह लिबरेशन एंड जस्टिस मूवमेंट के बीच भी दारफ़ूर समझौता कराया, जिसे दोहा समझौता भी कहा जाता है.More Related News