
चीन में भारत के नए राजदूत की इतनी तारीफ क्यों कर रहे चीनी?
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प्रदीप कुमार रावत चीन में भारत के नए राजदूत नियुक्त हुए हैं. चीन में उनकी नियुक्ति को लेकर चीन के लोग काफी खुश हैं और चीन की सोशल मीडिया पर गर्मजोशी से रावत का स्वागत किया जा रहा है. रावत पहले भी चीन में काम कर चुके हैं और वो फर्राटेदार चीनी भाषा भी बोल लेते हैं.
चीन में भारत के नवनियुक्त राजदूत प्रदीप कुमार रावत का चीन में दिल खोलकर स्वागत किया जा रहा है. फर्राटेदार चीनी भाषा बोलने वाले प्रदीप कुमार रावत को लेकर चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी का मुखपत्र समझे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि प्रदीप कुमार की नियुक्ति दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने में बड़ी भूमिका निभाने का काम करेगी. प्रदीप कुमार की नियुक्ति ऐसे वक्त में हुई है जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर 15वीं दौर की बैठक में स्थिरता बनाए रखने पर सहमति बनी है.
ग्लोबल टाइम्स ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि रावत की नियुक्ति भारत-चीन रिश्तों में सुधार के संकेतों के बीच हुई है. चीन को भी प्रदीप कुमार से बहुत उम्मीदें हैं कि वो दोनों देशों के बीच के रिश्तों को सुधारने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, 'विशेषज्ञों ने कहा कि रावत से चीन को बहुत उम्मीदें हैं कि वो भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि भारत की घरेलू राजनीति भारतीय राजनयिकों को संचालित करती है और जब तक भारत सरकार चीन को एक प्रतिद्वंद्वी के बजाय आपसी उपलब्धि में भागीदार के रूप में नहीं देखती और ठोस कदम नहीं उठाती तब तक दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध रास्ते पर नहीं आएंगे.'
प्रदीप कुमार का गर्मजोशी से स्वागत कर रहे चीनी
प्रदीप कुमार रावत ने 14 मार्च को चीन में भारतीय राजदूत का पदभार ग्रहण किया. चीन में रावत का स्वागत बड़े ही गर्मजोशी के साथ किया जा रहा है. चीन के लोग रावत की नियुक्ति को एक उम्मीद की तरह देख रहे हैं कि वो दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे. लोग कह रहे हैं कि रावत को चीनी भाषा आती है और वो चीन को अच्छे से जानते हैं.
चीनी सोशल मीडिया वीबो पर रावत की नियुक्ति की घोषणा वाले दूतावास की पोस्ट पर चीनी लोगों ने कई टिप्पणियां की है. एक यूजर ने लिखा, 'स्वागत है! आशा है कि आपके प्रयासों से दो प्राचीन सभ्यताएं अपनी बातचीत आगे बढ़ा सकती हैं, मतभेदों को दूर करते हुए कई मुद्दों पर सहमत हो सकती हैं और एक साथ विकास कर सकती हैं.'

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