
Navroz Mubarak 2022: आज से शुरू हुआ पारसी 'न्यू ईयर' नवरोज, जानें क्या है इसकी परंपरा और महत्व
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नवरोज दो पारसी शब्दों नव और रोज से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- नया दिन. पारसी लोग इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ सेलिब्रेट करते हैं. आइए आपको इसके इतिहास और परंपरा के बारे में विस्तार से बताते हैं.
पारसी समुदाय आज नवरोज यानी नए साल का जश्न मना रहा है. नवरोज पारसी समुदाय के लोगों का न्यू ईयर है. इस दिन से ही ईरानियन कैलेंडर का नया साल शुरू होता है. इसे पतेती, जमशेदी नवरोज और नवरोज भी कहा जाता है. नवरोज दो पारसी शब्दों नव और रोज से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है- नया दिन. पारसी लोग इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ सेलिब्रेट करते हैं. आइए आपको इसके इतिहास और परंपरा के बारे में विस्तार से बताते हैं.
नवरोज से फरवदीन की शुरुआत होती है जो सौर हिजरी कैलेंडर का पहला महीना होता है. आमतौर पर यह 20 या 21 मार्च को ही सेलिब्रेट किया जाता है. अच्छे काम से दिन की शुरुआत करना, कुछ अच्छा बोलना, घर की साफ-सफाई, नए कपड़ों की खरीदारी और घर में दोस्तों-रिश्तेदारों की दावत का इस दिन खास महत्व बताया गया है.
कैसे हुई नवरोज की शुरुआत? पारसी समुदाय की मान्यताओं के अनुसार, नवरोज फारस के राजा जमशेद की याद में मनाया जाता है. करीब तीन हजार साल पहले पारसी समुदाय के योद्धा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी. पारसी लोग इसे शहंशाही कैलेंडर भी कहते हैं. नवरोज वसंत ऋतु के दिन मनाया जाता है जब दिन और रात बराबर होते हैं. ऐसा कहते हैं कि जमशेद ने दुनिया को एक विनाश से बचाया था जो सर्दी के रूप में इंसानों की जान लेने आई थी.
महाराष्ट्र-गुजरात में बड़ा पर्व गुजरात और महाराष्ट में पारसी समुदाय की बड़ी तादाद रहती है जहां नवरोज को बड़ी धूमधाम और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है. इस दिन पारसी लोग एक दूसरे को गिफ्ट्स और ग्रीटिंग्स देते हैं और शुभकमानाएं देते हैं. वे इस दिन घर की साफ-सफाई करते हैं. लाइट्स और रंगोली से घर को सजाते हैं और अतिथि सत्कार करते हैं. ईरान, इराक, अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया के कुछ हिस्सों में भी यह त्योहार मनाया जाता है.
खास पकवान के साथ सेलिब्रेशन पारसी न्यू ईयर के दिन लोग घरों में मोरी दार, पटरानी मच्छी, हलीम, अकूरी, फालूदा, धनसक, रवो और केसर पुलाव जैसी पारंपरिक डिशेज घर में बनाते हैं. इस दिन पारसी मंदिर अगियारी में भी विशेष प्रार्थनाएं होती हैं. लोग मंदिर में जाकर फल, चंदन, दूध और फूलों का चढ़ावा देते हैं.

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