
MAMC में जुड़वां बच्चों का भ्रूणदान: पिता बोले- पंडित हैं, धर्म मानते हैं लेकिन विज्ञान भी जरूरी...
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सितंबर माह में ही दिल्ली की वंदना जैन ने अपना फीटस AIIMS एनॉटमी विभाग को दान किया था. इसी माह मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज को जुड़वां फीटस दान में प्राप्त हुए हैं. ये दान मिश्रा दंपति ने किया है. आइए जानते हैं क्या है मिश्रा दम्पति की कहानी और मेडिकल साइंस को क्या होगा इस दान का फायदा.
जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब इंसान को लगता है जैसे उसकी पूरी दुनिया बिखर गई. इन पलों मे कम ही होता है कि कोई अपने दुख को किसी बड़े उद्देश्य में बदल पाए. लेकिन जो ऐसा कर पाते हैं वो किसी मिसाल से कम नहीं होते.दिल्ली की रहने वाली अन्नपूर्णा और उनके पति राम सुरेश मिश्रा ऐसी ही मिसाल बने हैं. गर्भ में साढ़े पांच माह के जुड़वा बच्चे जीवित न रहने के बाद दोनों लगभग टूट गए थे. लेकिन फिर सूझबूझ से अपने भ्रूणों को मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज को मेडिकल छात्रों और रिसर्च के लिए दान कर दिया.
राम सुरेश आईटी कंपनी में काम करते हैं और पत्नी अन्नपूर्णा होम मेकर हैं. इनके घर पांच माह पहले खुशी की खबर आई थी. वो दूसरी बार माता-पिता बन रहे थे. घर में एक साथ दो बच्चों के आने की तैयारियां हो रही थीं.सबकुछ एकदम ठीकठाक चल रहा था. राम सुरेश बताते हैं कि प्रेगनेंसी के पांच महीने पूरे होने के बाद हमें अचानक अल्ट्रासाउंड में पता चला कि बच्चे की प्लेसेंटा में इंटर्नल प्रॉब्लम आ गई थी. इस तरह गर्भ में पहले हफ्ते में एक बच्चे की धड़कन नहीं मिली और अगले हफ्ते में दूसरा बच्चे की स्थिति गंभीर होती गई. इस तरह डेढ़ हफ्ते मे ही हमने दोनों को ही खो दिया. ये हमारे लिए सबसे कमजोर पल था जब आने वाली खुशियां दुख में बदल गई थी.
माता-पिता ने कैसे लिया ये टफ डिसिजन
वो आगे बताते हैं कि इसी बीच जब डॉक्टर से मेरी बात हुई तो उन्होंने मुझे जुड़वां फीटस को डोनेट करने का सुझाव दिया. उन्होंने समझाया कि स्टडी के लिए अगर इसे दान किया जाए तो मेडिकल छात्रों के लिए रिसर्च के जरिये ये भी समझना आसान हो जाता है कि ऐसा क्यों हुआ. हमने यही सोचा कि जो हमारे साथ हुआ वो आगे किसी के साथ न हो. अगर हमारे बच्चों के केस को भी रिसर्च में इस्तेमाल किया जा सकता है कि आखिर गर्भ में जुड़वां क्यों सरवाइव नहीं कर पाए.पत्नी से चर्चा की तो वो भी तैयार हो गईं.
राम कहते हैं कि परिवार के लिए यह कदम आसान नहीं था. हमारे बच्चे हेल्दी थे, सब कुछ ठीक था. लेकिन अचानक इतनी बुरी खबर ने हमें हिला दिया था. जैसे तैसे खुद को संभाला. हम पंडित हैं, धर्म को मानते हैं, हमारे यहां शवों को सबसे ज्यादा सम्मानित तरीके से विदा किया जाता है लेकिन विज्ञान भी उतना ही जरूरी है. जब डॉक्टर ने हमें रेफरेंस दिया तो हमें ये बात समझ आई. इस तरह हमने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज को भ्रूण दान करने का निर्णय लिया. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में इस जुड़वां भ्रूण दान की प्रक्रिया को आगम श्री फाउंडेशन और दधीचि देह दान समिति (DDDS) ने पूरा कराया. टीम ने डॉ. पूनम वर्मा और जीपी तायल के सहयोग से दान की प्रोसेस पूरी की.
कैसे होता है ये दान

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