
Ground Report: एक प्रिंसिपल, 142 छात्राओं से छेड़छाड़...और ‘भाईचारा’ बचाने के लिए चुप्पी ओढ़े गांव!
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अगस्त के आखिर में जींद के सरकारी स्कूल की बच्चियों ने एक चिट्ठी लिखी. अधपकी हिंदी में लिखे खत की सबजेक्ट लाइन थी- लड़कियों को कमरे में बुलाकर प्रिंसिपल की छेड़छाड़...! करीब डेढ़ सौ छात्राएं काले शीशे से घिरे कमरे में यौन शोषण का शिकार हुईं. 6 महीने बीत चुके. साथ ही बीत चुकी हैं इंसाफ की उम्मीदें. 142 पीड़िताओं में से 5 बाकी हैं. गांवभर में जैसा सन्नाटा है, बहुत मुमकिन है कि वे भी पीछे हट जाएं. ये पड़ताल है, डूबते हुए हौसलों और मरते हुए केस की...
शुरुआत करते हैं, उस चिट्ठी से. ‘सेवा में, माननीय महिला आयोग नई दिल्लीविषय- सरकारी स्कूल में पढ़ रही नौजवान लड़कियों को प्रिंसिपल द्वारा अपने कमरे में बुलाकर गलत जगहों पर हाथ लगाने की शिकायत... निवेदन है कि हम सभी छात्राएं जींद के ...स्कूल में पढ़ती हैं, जहां प्रिंसिपल करतार सिंह बंद कमरे में हमारे साथ अश्लील हरकतें करता है. उसने अपने कमरे में काले शीशे लगवा रखे हैं, जिससे अंदर वालों को बाहर दिख जाता है, लेकिन बाहर से भीतर का अंदाजा नहीं हो पाता. प्रिंसिपल को जो भी लड़की पसंद आ जाती है, उसे किसी न किसी बहाने से वो ऑफिस में बुला लेता है. वहां लड़कियों को अपनी कुर्सी के पास खड़ा करके उनसे गंदी-गंदी बातें करता और गलत जगहों पर छूता है. जब मैंने इसका विरोध किया तो उसने मुझे धमकाया कि जैसा कह रहा हूं, तू चुपचाप मान ले, वरना मैं घरवालों से शिकायत कर दूंगा कि तुझे एक लड़के के साथ देखा है. इसके बाद वे तुझे स्कूल भी नहीं भेजेंगे और पढ़ाई भी छुड़वा देंगे. प्रार्थी XYZ...’
पांच पन्नों की इस चिट्ठी पर नजर डालते ही दिखता है कि भेजने से पहले उसे कई बार स्टेपल किया और खोला गया होगा. नए पन्ने जोड़े-घटाए गए होंगे. सफेद पेजों पर स्याह करतूतों का खुलासा करने वालियों का नाम बदला हुआ है, ये बात चिट्ठी लिखने-वालियों ने खुद जोड़ी.14 से 17 साल की बच्चियों को 57 साल के रसूखदार शख्स के खिलाफ बोलने में अपनी सारी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी. लेकिन अगस्त से फरवरी की दूरी तय करते-करते वो हौसला पस्त पड़ चुका. पीड़िताएं चुप. परिवार चुप. गांववाले चुप. यहां तक कि अधिकारी तक बोलने को तैयार नहीं. कुरेदो तो जवाब मिलेगा- ‘जवान होती लड़कियों का मामला है. हम-आप तीली दिखाकर चले जाएंगे, उनके घर बर्बाद हो जाएंगे.’ इन्हीं बंद कपाटों को खटखटाने हम जींद से 20 किलोमीटर दूर उस गर्ल्स स्कूल पहुंचे. मेन एंट्री बंद मिली. सामने ही खंभों पर लिखा था- 'आइए, मैं आपका जीवन बदल दूंगा.' स्कूल की पुकार! बच्चों से वादा कि इस इमारत में आओगे तो जिंदगी पहले-सी न रहेगी. हुआ भी बिल्कुल ऐसा ही. यहां पढ़ने-वालियों का जीवन बदल चुका है. वे नजरें झुकाए आती हैं, और सिर झुकाए हुए ही लौट जाती हैं...और वहां से गुजरने वाले लोग, झुके सिरों का मुआयना करते हुए.
9वीं से 12वीं तक की हर लड़की फुसफुसाहट के घेरे में. क्या इसके साथ भी कुछ हुआ होगा! सिर से पांव तक टटोलकर लक्षण खोजती हुई आंखें. आसपास की दुकानों पर घूमकर बात करने पर कइयों ने कहा- स्कूल में हजार से ऊपर लड़कियां हैं. कुछ को ही कमरे में क्यों बुलाया गया. कुछ तो 'कसूर' उनका भी रहा होगा. इन लड़कियों पर चर्चा शुरू हुई 31 अगस्त को लिखी हुई चिट्ठी के बाद. महिला आयोग से लेकर राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी में प्रिंसिपल करतार सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे. बच्चियों का कहना था कि वो फेल करने या बदनाम करने की धमकी देकर उन्हें ब्लैकमेल करता और गलत तरीके से छूता है. अगस्त में लिखी गई अर्जी पर पॉक्सो के तहत 24 घंटों के भीतर एक्शन होना था, लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी हुई 4 नवंबर को. इस बीच बहुत कुछ बदल गया. इसी बदले हुए की पड़ताल के लिए हम उचाना समेत आरोपी के गांव बड़ौदा और उस गांव भी पहुंचे, जहां पहले भी प्रिंसिपल का इसी आरोप के चलते तबादला हुआ था. स्कूल पहुंचते हुए दोपहर के 1 बज चुके थे. दो-चार सवालों और दसेक मिनट का इंतजार करवाने के बाद नई प्रिंसिपल सामने आईं. हाथ बंधे हुए. चेहरे पर अनचाहे मेहमानों को टरकाने वाली सख्ती. महिला प्रिंसिपल, जिन्हें काफी सोच-समझकर विवादित स्कूल का जिम्मा दिया गया होगा. जल्द ही ये अंदाजा सही भी लगने लगा. वे इस विषय पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं थीं. ‘आप मीडिया से हैं. बात करूंगी लेकिन दो मिनट से ज्यादा नहीं. और उस मामले पर बिल्कुल नहीं.’
हम प्रिंसिपल ऑफिस में घुसते हैं. लंबा-आयताकार कमरा. सामने ही सीसीटीवी स्क्रीन लगी हुई, जहां से क्लासरूम दिखते हैं. यहीं से आरोपी बच्चियों को आइडेंटिफाई करता रहा होगा. कितनी लड़कियां हैं, पढ़ाई कैसी चल रही है, जैसी छुटपुट शुरुआत के बीच एक शख्स दरवाजे पर आता है. खुद को किसी बच्ची का चाचा बताते हुए उसे जल्दी ले जाने की दरख्वास्त करता हुआ. प्रिंसिपल रुखाई से झिड़क देती हैं. मां-पिताजी के अलावा और कोई नहीं आ सकता. आप जाइए. मैं मौका पाकर पूछ डालती हूं- काले शीशे, जिनका बार-बार जिक्र हो रहा था, वो हट गए क्या? मेरे आने पर तो वैसा कुछ दिखा नहीं. पहले का मैं नहीं जानती. वे लड़कियां कैसी हैं. स्कूल आती हैं, काउंसलिंग मिली उन्हें? कौन सी लड़कियां! सब पढ़ाई कर रही हैं. सब ठीक चल रहा है. आपके स्कूल में काउंसलिंग...सवाल पूरा होने से पहले ही प्रिंसिपल अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुईं. मैं बाहर निकलते हुए कहती हूं- स्कूल का एक राउंड ले लें? ‘नहीं. लड़कियां डिस्टर्ब होती हैं. नमस्कार.’ ये कहते हुए वे खुद मेन गेट तक चली आईं. हमारे पूरी तरह बाहर निकलने से पहले ही ‘मीडियावालों के लिए’ गेट बिल्कुल न खोलने की तीखी हिदायत.
अगला पड़ाव मखंड गांव था. यहां वो स्कूल है, जहां सालों पहले करतार सिंह पर यही आरोप लगा था. गांववालों ने दबाव बनाकर उसकी बदली दूसरी जगह करवा दी, ये बात गांव के पूर्व सरपंच राजकुमार कहते हैं. धुंधभरे रास्ते पर चलते हुए देर हो गई. स्कूल बंद हो चुका था. हम सीधे पूर्व मुखिया के पास पहुंचते हैं.
खेतों में हुक्का गुड़गुड़ाता हुआ ये शख्स एक वॉइस रिकॉर्डिंग सुनाता है, जो तब की है, जब आरोपी गांव में हुआ करता था. इसमें एक महिला शिकायत कर रही है कि उसने प्रिंसिपल को मिड-डे मील तैयार करने वाली दूसरी महिला से छेड़खानी करते देखा है. तभी आप लोगों ने शिकायत क्यों नहीं की? मैं तब सरपंच नहीं था. कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्या लड़कियों के साथ भी ऐसा करता था? करता होगा तभी तो गांववालों ने उसे भगा दिया. उस समय जो सरपंच थे, वे कहां मिलेंगे, बात करनी है. वो तो यहां नहीं हैं. महिला सरपंच थी. बोलने से बचती है. चलिए, आप ही जो जानते हैं, कैमरा पर बता दीजिए. नहीं. कैमरा मत चालू कीजिए. मैं जितना जानता था, बता चुका. सुनी-सुनाई बात है. मैं तब पद पर भी नहीं था. ऑडियो आप खुद सुन चुकीं. बात खत्म हो जाती है. मिड-डे मील बनाने वाली उस महिला से मिलना चाहती हूं तो कहा जाता है कि उसका दिमाग 'फिर' चुका. अब वो किसी से बात नहीं करती.

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