1965 की जंग वाला टैंक, साग और चरखा... राजभवन से जुड़ी हैं द्रौपदी मुर्मू की यादें
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द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के बाद से ही झारखंड राजभवन में खुशी का माहौल है. यहां उन्होंने एक एक गौ पालन केन्द्र शुरू किया था और 52 एकड़ में शुरू की गई नेचुरल फार्मिंग भी यहां के कर्मचारियों को याद रहने वाली है.
समाज की बेड़ियों को तोड़ आगे बढ़ने वाली द्रौपदी मुर्मू भारत की अगली राष्ट्रपति होंगी. वह आदिवासी समुदाय से आने वाली देश की पहली राष्ट्रपति हैं. इससे पहले वह झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य की राज्यपाल रह चुकी हैं. यहां के राजभवन में 6 साल की लंबी अवधि बिताने वाली द्रौपदी मुर्मू के स्टाफ ने आजतक से बातचीत में उनके व्यक्तित्व से जुड़ी कई रोचक बातों को बताया. जानें क्या खास है द्रौपदी मुर्मू की शख्सियत में.
सादा जीवन, उच्च विचार की मिसाल
झारखंड राजभवन में द्रौपदी मुर्मू के साथ काम करने वाले स्टाफ के एक सदस्य ने कहा- वो सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धान्त पर जीवन जीने में विश्वास रखती हैं. एक तरफ वो शूरवीरों और आंदोलनकारियों को सम्मान की नजर से देखती हैं, दूसरी तरफ उन्हें गांधी का चरखा भी उतना ही प्यारा है. यानी कहें तो वो गांधीवादी विचारधारा में भी अटूट विश्वास रखती हैं.
...जब मुर्मू ने मंगवाया 1965 का टैंक
राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू भारत की तीनों सेनाओं की अध्यक्ष होंगी, लेकिन शौर्य को अहमियत देना उनके जीवन का हिस्सा रहा है. एक घटना का जिक्र करते हुए उनके स्टाफ के सदस्यों ने बताया कि झारखंड राजभवन में रखा टैंक T-55, 1965 में भारतीय सेना ने इस्तेमाल किया था. पाकिस्तान के साथ हुई जंग के वक्त ये टैंक सेना में मुख्य हथियार के तौर पर शामिल था. ये टैंक स्क्रैप हो गया था, लेकिन द्रौपदी मुर्मू ने इसे फिर से एक महीने के भीतर ठीक करवाकर राजभवन में लगवाया. ये टैंक जहां देश की ताकत का अहसास कराता है वहीं उनके के विजन को भी दिखाता है.
राजभवन में लगवाया गांधी जी का चरखा
एक अधिकारी ने बताया कि यह घटना आइजोल शहर के दक्षिणी बाहरी इलाके में मेल्थम और ह्लिमेन के बीच के इलाके में सुबह करीब छह बजे हुई. रिपोर्ट में कहा गया है कि भूस्खलन के प्रभाव के कारण कई घर और श्रमिक शिविर ढह गए, जिसके मलबे के नीचे कम से कम 21 लोग दब गए. अब तक 13 शव बरामद किए जा चुके हैं और आठ लोग अभी भी लापता हैं.