रक्षा मंत्री जगजीवन राम बनकर पर्दे पर आखिरी बार दिखेंगे सतीश कौशिक, ये होगी लास्ट फिल्म
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सतीश कौशिक के लिए कहा जाता है कि वह एक दिलखुश इंसान थे. सबको बस हंसाते ही रहते थे. 100 से ज्यादा फिल्में इन्होंने कीं. वो बात अलग है कि सतीश ने ज्यादातर रोल कॉमेडी के किए, पर समय के साथ जिस तरह पर्सनैलिटी में बदलाव आता है, उसी तरह एक्टर के किरदारों में भी आया.
हमें हंसाने, गुदगुदाने और खिलखिलाने वाले सतीश कौशिक हमेशा के लिए अलविदा कह गए. पंचतत्व में विलीन हो गए... सतीश कौशिक 66 साल के थे. कार्डियक अरेस्ट के चलते इन्होंने दम तोड़ा. फिल्म इंडस्ट्री तो छोड़ो, आम जनता के लिए यह खबर बेहद ही दुखद रही. पत्नी और 11 साल की बेटी के लिए यह मुश्किल घड़ी है. जिगरी दोस्त अनुपम खेर और अनिल कपूर दुखी हैं. दोनों की आंखें नम हैं. सतीश के इस तरह चले जाने से दोनों आहत हैं.
सतीश कौशिक के लिए कहा जाता है कि वह एक दिलखुश इंसान थे. सबको बस हंसाते ही रहते थे. 100 से ज्यादा फिल्में इन्होंने कीं. वो बात अलग है कि सतीश ने ज्यादातर रोल कॉमेडी के किए, पर समय के साथ जिस तरह पर्सनैलिटी में बदलाव आता है, उसी तरह एक्टर के किरदारों में भी आया. सीरियस रोल से लेकर इन्होंने एक पिता, भाई, वकील और न जाने कितने ऐसे किरदार बड़े पर्दे पर निभाए, जिन्हें देखकर हर किसी ने इनकी केवल प्रशंसा ही की. सपोर्टिंग रोल में भले ही सतीश नजर आते रहे, पर फिल्मों में जान यही फूंकते दिखते थे.
सतीश की आखिरी फिल्म सतीश कौशिक को हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'छतरीवाली' में देखा गया था. एक्टर ने रतन लांबा के कॉमिक किरदार को निभाया था. अभी एक्टर की एक और फिल्म बची है जो दर्शकों के बीच रिलीज होनी बाकी है. वो है कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी'. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान 1975-76 में भारत में लगी इमरजेंसी पर यह फिल्म बनी है. आखिरी बार सतीश को इसी फिल्म में देखा जाएगा. फिल्म में सतीश रक्षा मंत्री जगजीवन राम का रोल प्ले करते नजर आएंगे.
पिछले दिनों जब फिल्म से सतीश कौशिक का फर्स्ट लुक रिवील हुआ था तो वह बेहद एक्साइटेड थे. सफेद बाल, मूंछें, आंखों पर काला चश्मा, ग्रे नेहरू जैकेट पहने सतीश कौशिक का जब यह लुक सामने आया, तो हर किसी के बीच इसकी चर्चा हुई. 'प्रतिभा के पावरहाउस' सतीश कौशिक को कहा गया था. हर किसी ने इनकी तारीफ की थी.
कौन थे रक्षा मंत्री जगजीवन राम? जगजीवन राम, एक स्वतंत्रता सेनानी थे. इन्हें बाबूजी के नाम से भी जाना जाता था. जगजीवन राम, भारतीय राजनीतिक इतिहास में सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक थे. यह भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री और राजनेता थे. 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश भर में आपातकाल की घोषणा की थी. इस दौरान जगजीवन राम ने अपने पद का त्याग कर, कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. खुद की एक अलग पार्टी बनाई थी. नाम था 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी'. साल 1977 के आम चुनावों में जगजीवन राम की विजय हुई थी. इस दौरान उन्हें रक्षा मंत्रालय संभालने के लिए दिया गया था. यहां से इनकी जर्नी की शुरुआत हुई. साल 1977 में ही 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी', जनता पार्टी में सम्मिलित कर ली गई. इसके बाद साल 1979 में जगजीवन राम को भारत वर्ष के उप-प्रधानमंत्री के रूप में घोषित किया गया, पर एक साल में ही जनता पार्टी का आपसी मनमुटावों के कारण बंटवारा हो गया. साल 1980 में जगजीवन राम ने कांग्रेस (जे) पार्टी बनाई. इसी के साथ वह पॉलिटिकल करियर में आगे बढ़ते रहे. फिर साल 1986 में जगजीवन राम ने अंतिम सांस ली. आज जगजीवन राम को साहसी, ईमानदार और अमूल्य अनुभव वाले नेता के रूप में जाना जाता है.