मीराबाई चानू को वेटलिफ्टिंग में छोटे कद से मुश्किल या आसानी?
BBC
मीराबाई चानू की जीत में उनके छोटे क़द का कोई योगदान होता है या मुश्किल खड़ी करता है?
भारतीय वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतकर इतिहस रच दिया है. टोक्यो ओलंपिक में अब तक कोई मेडल जीतने वाली वो इकलौती खिलाड़ी हैं. चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया है. मीराबाई ने अपनी जीत के बाद कहा था, ''मेरे लिए यह एक सपने का सच होने की तरह है. मैं इस पदक को अपने मुल्क को समर्पित करती हूँ. करोड़ों भारतीयों ने मेरे लिए दुआएं मांगीं और मेरे इस सफ़र में साथ रहे, इसके लिए मैं शुक्रगुज़ार हूँ.'' चानू की यह अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है. इससे पहेले चानू ने राष्ट्रमंडल खेलों में भी धमाल किया था. तब 23 साल की चानू ने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाया था. लेकिन ऐसे बड़े-बड़े कारनामे कर दिखाने वाली चानू के क़द पर गौर किया? क्या उनके क़द का उनकी जीत में कोई योगदान है या मुश्किल खड़ी करता है? मीराबाई चानू की पहली कोच रहीं अनीता चानू समझाती हैं, ''छोटा क़द होने से भार को नीचे से ऊपर तक लाने की जो दूरी होती है वो कम तय करनी पड़ती है. वहीं लंबे क़द वाले को ज़्यादा करनी होती है. आप कितने किलो का वज़न उठा रहे हैं, उस पर क़द का असर नहीं होगा लेकिन वो वज़न कितनी दूरी तय कर रहा है, उस पर क़द का असर पड़ता है. वह बताती हैं कि भारोत्तोलन प्रतियोगिता में शरीर का गठीला होना सबसे ज़रूरी है न कि क़द.More Related News