
मंडल कमीशन पर तीन दशक से मौन रही बीजेपी अब क्यों बताने लगी है अपनी उपलब्धि?
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मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुए 33 साल हो गए लेकिन बीजेपी इस पर मौन रही. अब पार्टी इसे लेकर न सिर्फ मुखर हो रही है, बल्कि अपनी उपलब्धि भी बताने लगी है. क्यों?
देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और इस चुनावी मौसम में जातिगत जनगणना का शोर है. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत जनगणना कराने के बाद आरक्षण का दांव चल दिया है तो वहीं कांग्रेस ने भी मशाल थाम ली है. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने ये मुद्दा संसद में उठाया. इसके बाद कांग्रेस ने राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने का वादा कर इस दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया.
अब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार थमने से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी मुखर हो गई है. जातिगत जनगणना के शोर के बीच अब बीजेपी भी क्रेडिट वॉर में कूद पड़ी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां गरीबी को सबसे बड़ी जाति बताकर, हिंदुओं की संख्या और हक की बात कर रहे थे. वहीं, अब बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस को जमकर घेरा है.
अमित शाह ने इंदौर के देपालपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को कई साल तक दबाए रखा, इसका विरोध किया. कांग्रेस ने ओबीसी के लिए किया क्या है? एक तरफ वह कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर गए तो दूसरी तरफ शैक्षणिक संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण और ओबीसी आयोग को संवैधानिक मान्यता देने का जिक्र कर बीजेपी सरकार की उपलब्धियां भी गिना गए. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू किए जाने को लेकर अमित शाह ने खुलकर तो नहीं कहा लेकिन जिस तरह से कांग्रेस पर इसे दबाए रखने का आरोप लगाया, वह इसे बीजेपी की उपलब्धि बताने जैसा ही माना जा रहा है.
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने नीतीश सरकार के आरक्षण बढ़ाने के दांव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ये कहा था कि हम हमेशा आरक्षण के समर्थक रहे हैं. बीजेपी आरक्षण की सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन करेगी. साल 1990 में मांडा के महाराज वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल की जिस सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का फैसला किया, वह बीजेपी के समर्थन से ही चल रही थी.
तब से अब तक 33 साल गुजर गए लेकिन बीजेपी मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू किए जाने को अपनी उपलब्धि बताने से बचती रही, मौन रही. अब पार्टी के नेता इसे लेकर खुलकर बोल रहे हैं, इसे इनडायरेक्ट तरीके से उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं तो इसकी वजह क्या है? ये सवाल भी उठ रहे हैं. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद जगह-जगह ओबीसी आरक्षण के विरोध में सामान्य वर्ग के छात्रों ने आत्मदाह किए, युवा सड़कों पर उतर आए और एक आंदोलन खड़ा हो गया. तब बिहार में लालू यादव, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जैसे ओबीसी नेता भी अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटे थे. बीजेपी ने इस आरक्षण विरोधी आग पर पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के जरिए पानी डालने का काम किया.
बीजेपी को शायद ये आशंका थी कि कहीं सामान्य मतदाता उससे छिटक न जाए और पार्टी के 33 साल लंबे मौन के पीछे इसे प्रमुख वजह बताया जा रहा है. दरअसल, बीजेपी की पहचान तब ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी के रूप में ही थी. किसी एक वोट बैंक के छिटकने का मतलब था बीजेपी को बड़ा नुकसान.

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