भारत-पाकिस्तान बासमती चावल के जीआई टैग को लेकर क्यों आमने-सामने हैं?
BBC
क्या है बासमती के जीआई टैग का विवाद, जिस पर भारत-पाकिस्तान आमने-सामने हैं?
साल 1962 की बात है. ब्रिटेन का रहने वाला एक केमिकल इंजीनियर, जो एग्रीकल्चर की फ़ील्ड में काम करता था, अमेरिका आया. अमेरिका की सुपरमार्केट्स में घूमते हुए उसे ये हैरानी हुई कि बासमती चावल यहां दुकानों में क्यों नहीं बिकता है. अमेरिकी इसे सिर्फ़ रेस्त्रां में ही क्यों खाते हैं? लंदन में अक्सर बासमती चावल का लुत्फ़ उठानेवाले इस शख़्स के ज़ेहन में ये ख़याल घर कर गया, पर फिर वो चावल पर रिसर्च के अपने कामकाज में मसरूफ़ हो गया. 1987 में उसने अमेरिका के टेक्सस में 'फ़ार्म्स ऑफ़ टेक्सस' नाम की कंपनी जॉइन की, जो 1990 में राइसटेक (RiceTec, Inc) के नाम से जानी गई. ये शख़्स सिर्फ़ चावल बेचने वाली 100 कर्मचारियों की इस कंपनी का पहला सीईओ था. राइसटेक में रहते हुए इस शख़्स ने टेक्सस के लंबे दाने वाले चावल और भारत के बासमती चावल को मिलाकर एक हाइब्रिड बीज तैयार किया और इसे नाम दिया 'टेक्समती', अमेरिका का अपना बासमती. वैसे तो ये चावल पकने के बाद कहीं से बासमती की बराबरी नहीं करता था, लेकिन तब अमेरिका में दूसरे देशों से चावल आयात करने का चलन आज जितना नहीं था. मार्केट में कोई प्रतिद्वंद्वी तो था नहीं, ऐसे में देखते ही देखते इस चावल ने सुपरमार्केट्स की शेल्फ़ में अपनी जगह बना ली.More Related News